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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1831
ऋषिः - अवत्सारः काश्यपः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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अ꣣ग्नि꣢꣫र्ज्योति꣣र्ज्यो꣡ति꣢र꣣ग्नि꣢꣫रिन्द्रो꣣ ज्यो꣢ति꣣र्ज्यो꣢ति꣣रि꣡न्द्रः꣢ । सू꣢र्यो꣣ ज्यो꣢ति꣣र्ज्यो꣢तिः꣣ सू꣡र्यः꣢ ॥१८३१

स्वर सहित पद पाठ

अ꣣ग्निः꣢ । ज्यो꣡तिः꣢꣯ । ज्यो꣡तिः꣢꣯ । अ꣣ग्निः꣢ । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । ज्यो꣡तिः꣢꣯ । ज्यो꣡तिः꣢꣯ । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । सू꣡र्यः꣢꣯ । ज्यो꣡तिः꣢꣯ । ज्यो꣡तिः꣢꣯ । सू꣡र्यः꣢꣯ ॥१८३१॥


स्वर रहित मन्त्र

अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्निरिन्द्रो ज्योतिर्ज्योतिरिन्द्रः । सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः ॥१८३१


स्वर रहित पद पाठ

अग्निः । ज्योतिः । ज्योतिः । अग्निः । इन्द्रः । ज्योतिः । ज्योतिः । इन्द्रः । सूर्यः । ज्योतिः । ज्योतिः । सूर्यः ॥१८३१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1831
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 6; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(अग्निः) पार्थिव अग्नि (ज्योतिः) एक ज्योति है, (ज्योतिः) वह ज्योति ही (अग्निः) वस्तुतः अग्नि है। (इन्द्रः) बिजली (ज्योतिः) एक ज्योति है, (ज्योतिः) वह ज्योति ही (इन्द्रः) वस्तुतः बिजली है। (सूर्यः) सूर्य (ज्योतिः) एक ज्योति है, (ज्योतिः) वह ज्योति ही (सूर्यः) वस्तुतः सूर्य है ॥१॥

भावार्थ - यद्यपि अग्नि, विद्युत् और सूर्य ये सब पृथिवी, जल, वायु, तेज और आकाश इन पञ्च तत्त्वों से मिलकर बने हुए हैं, तो भी अग्नि का अग्नित्व, विद्युत् का विद्युत्त्व और सूर्य का सूर्यत्व ज्योति के कारण से ही है, ज्योति के बिना उनमें कुछ भी महत्त्व अवशिष्ट नहीं रहेगा। इसी प्रकार मनुष्य का भी मनुष्यत्व अध्यात्म-ज्योति के कारण से ही है। इसलिए सब मनुष्यों को चाहिए कि अध्यात्म-ज्योति के सञ्चय का प्रयत्न करें ॥१॥

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