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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1839
ऋषिः - त्रिशिरास्त्वाष्ट्रः सिन्धुद्वीप आम्बरीषो वा
देवता - आपः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
त꣢स्मा꣣ अ꣡रं꣢ गमाम वो꣣ य꣢स्य꣣ क्ष꣡या꣢य꣣ जि꣡न्व꣢थ । आ꣡पो꣢ ज꣣न꣡य꣢था च नः ॥१८३९॥
स्वर सहित पद पाठत꣡स्मै꣢꣯ । अ꣡र꣢꣯म् । ग꣣माम । वः । य꣡स्य꣢꣯ । क्ष꣡या꣢꣯य । जि꣡न्व꣢꣯थ । आ꣡पः꣢꣯ । ज꣣न꣡य꣢थ । च꣣ । नः ॥१८३९॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्मा अरं गमाम वो यस्य क्षयाय जिन्वथ । आपो जनयथा च नः ॥१८३९॥
स्वर रहित पद पाठ
तस्मै । अरम् । गमाम । वः । यस्य । क्षयाय । जिन्वथ । आपः । जनयथ । च । नः ॥१८३९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1839
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 7; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 7; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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विषय - आगे फिर ब्रह्मानन्द की धाराओं का ही विषय है।
पदार्थ -
हे (आपः) ब्रह्मानन्द की धाराओ ! (तस्मै) उस प्रयोजन के लिए, हम (वः) तुम्हें (अरम्) पर्याप्त रूप से (गमाम) प्राप्त कर लें, (यस्य) जिस अभ्युदय और निःश्रेयस रूप प्रयोजन के (क्षयाय) हमारे अन्दर निवास कराने के लिए, तुम (जिन्वथ) गति करती हो। तुम (नः) हमें (जनयथ च) नवजीवन से अनुप्राणित भी कर दो ॥३॥
भावार्थ - परमात्मा की उपासना से जो दिव्य आनन्द प्राप्त होता है,उससे मनुष्य अपने जीवन में परम उत्कर्ष और मोक्ष भी पा सकता है ॥३॥
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