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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 192
ऋषिः - सत्यधृतिर्वारुणिः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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म꣡हि꣢ त्री꣣णा꣡मव꣢꣯रस्तु द्यु꣣क्षं꣢ मि꣣त्र꣡स्या꣢र्य꣣म्णः꣢ । दु꣣राध꣢र्षं꣣ व꣡रु꣢णस्य ॥१९२॥
स्वर सहित पद पाठम꣡हि꣢꣯ । त्री꣣णा꣢म् । अवरि꣡ति꣢ । अ꣣स्तु । द्युक्ष꣢म् । द्यु꣣ । क्ष꣢म् । मि꣣त्र꣡स्य꣢ । मि꣣ । त्र꣡स्य꣢꣯ । अ꣣र्यम्णः꣢ । दु꣣रा꣡धर्ष꣢म् । दुः꣣ । आध꣡र्ष꣢म् । व꣡रु꣢꣯णस्य ॥१९२॥
स्वर रहित मन्त्र
महि त्रीणामवरस्तु द्युक्षं मित्रस्यार्यम्णः । दुराधर्षं वरुणस्य ॥१९२॥
स्वर रहित पद पाठ
महि । त्रीणाम् । अवरिति । अस्तु । द्युक्षम् । द्यु । क्षम् । मित्रस्य । मि । त्रस्य । अर्यम्णः । दुराधर्षम् । दुः । आधर्षम् । वरुणस्य ॥१९२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 192
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 8;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 8;
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विषय - अगले मन्त्र में मित्र, वरुण और अर्यमा से रक्षण की याचना की गयी है।
पदार्थ -
प्रथम—अध्यात्म और अधिदैवत पक्ष में। ऋचा का देवता इन्द्र होने से इन्द्र को सम्बोधन अपेक्षित है। हे इन्द्र परमैश्वर्यशाली जगदीश्वर ! आपकी कृपा से (मित्रस्य) अकाल-मृत्यु से रक्षा करनेवाले वायु और जीवात्मा का, (अर्यम्णः) अपने आकर्षण से पृथिवी आदि लोकों का नियन्त्रण करनेवाले सूर्यलोक का तथा इन्द्रियों को नियन्त्रण में रखनेवाले मन का, और (वरुणस्य) आच्छादक मेघ का तथा प्राण का, (त्रीणाम्) इन तीनों का (महत्) महान्, (द्युक्षम्) तेज को निवास करानेवाला और (दुराधर्षम्) दुष्पराजेय, दृढ़ (अवः) रक्षण (अस्तु) हमें प्राप्त हो ॥ द्वितीय—राष्ट्र के पक्ष में। हे (इन्द्र) प्रजा के कष्टों को दूर करने तथा सुख प्रदान करनेवाले राजन् ! आपकी व्यवस्था से (मित्रस्य) सबके मित्र शिक्षाध्यक्ष का, (अर्यम्णः) श्रेष्ठों और दुष्टों के साथ यथायोग्य व्यवहार करनेवाले न्यायाध्यक्ष का, और (वरुणस्य) पाशधारी, शस्त्रास्त्रयुक्त, धनुर्वेद में कुशल सेनाध्यक्ष का, (त्रीणाम्) इन तीनों का (महि) महान्, (द्युक्षम्) राजनीति के प्रकाश से पूर्ण, (दुराधर्षम्) दुष्पराजेय (अवः) रक्षण (अस्तु) हम प्रजाजनों को प्राप्त हो ॥८॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है ॥८॥
भावार्थ - परमात्मा के अनुशासन में शरीरस्थ आत्मा, मन, बुद्धि, प्राण आदि और बाह्य सूर्य, पवन, बादल आदि तथा राजा के अनुशासन में सब राजमन्त्री एवं अन्य राज्याधिकारी अपना-अपना रक्षण आदि हमें प्रदान करें, जिससे हम उत्कर्ष के लिए प्रयत्न करते हुए समस्त प्रेय और श्रेय को प्राप्त कर सकें ॥८॥
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