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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 201
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
9
इ꣣मा꣡ उ꣢ त्वा सु꣣ते꣡सु꣢ते꣣ न꣡क्ष꣢न्ते गिर्वणो꣣ गि꣡रः꣢ । गा꣡वो꣢ व꣣त्सं꣢꣫ न धे꣣न꣡वः꣢ ॥२०१॥
स्वर सहित पद पाठइ꣣माः꣢ । उ꣣ । त्वा । सुते꣡सु꣢ते । सु꣣ते꣢ । सु꣣ते । न꣡क्ष꣢꣯न्ते । गि꣣र्वणः । गिः । वनः । गि꣡रः꣢꣯ । गा꣡वः꣢꣯ । व꣣त्स꣢म् । न । धे꣣न꣡वः꣢ ॥२०१॥
स्वर रहित मन्त्र
इमा उ त्वा सुतेसुते नक्षन्ते गिर्वणो गिरः । गावो वत्सं न धेनवः ॥२०१॥
स्वर रहित पद पाठ
इमाः । उ । त्वा । सुतेसुते । सुते । सुते । नक्षन्ते । गिर्वणः । गिः । वनः । गिरः । गावः । वत्सम् । न । धेनवः ॥२०१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 201
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 9;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 9;
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विषय - अगले मन्त्र में स्तोता जन परमात्मा को कह रहे हैं।
पदार्थ -
हे (गिर्वणः) स्तुतिवाणियों से सेवनीय वा याचनीय परमैश्वर्यवन् इन्द्र परमात्मन् ! (इमाः उ) ये हमसे उच्चारण की जाती हुई (गिरः) वेदवाणियाँ अथवा स्तुतिवाणियाँ (सुतेसुते) प्रत्येक ज्ञान, कर्म और उपासना के व्यवहार में (त्वा) आपको (नक्षन्ते) प्राप्त होती हैं, (धेनवः) अपना दूध पिलानेवाली या अपने दूध से तृप्त करनेवाली (गावः) गौएँ (वत्सं न) जैसे बछड़े को प्राप्त होती हैं ॥८॥ इस मन्त्र में उपमालङ्कार है ॥८॥
भावार्थ - जैसे पौसे हुए पयोधरोंवाली नवप्रसूत गौएँ अपना दूध पिलाने के लिए शीघ्रता से बछड़े के पास जाती हैं, वैसे ही हमारी रस बहानेवाली, अर्थपूर्ण स्तुतिवाणियाँ प्रत्येक ज्ञानयज्ञ में, प्रत्येक कर्मयज्ञ में और प्रत्येक उपासनायज्ञ में परमात्मा के समीप पहुँचें ॥८॥
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