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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 204
ऋषिः - त्रिशोकः काण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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त꣣र꣡णिं꣢ वो꣣ ज꣡ना꣢नां त्र꣣दं꣡ वाज꣢꣯स्य꣣ गो꣡म꣢तः । स꣣मान꣢मु꣣ प्र꣡ श꣢ꣳ सिषम् ॥२०४॥

स्वर सहित पद पाठ

त꣣र꣡णि꣢म् । वः꣣ । ज꣡ना꣢꣯नाम् । त्र꣣द꣢म् । वा꣡ज꣢꣯स्य । गो꣡म꣢꣯तः । स꣣मा꣢नम् । स꣣म् । आन꣢म् । उ꣣ । प्र꣢ । शँ꣣सिषम् ॥२०४॥


स्वर रहित मन्त्र

तरणिं वो जनानां त्रदं वाजस्य गोमतः । समानमु प्र शꣳ सिषम् ॥२०४॥


स्वर रहित पद पाठ

तरणिम् । वः । जनानाम् । त्रदम् । वाजस्य । गोमतः । समानम् । सम् । आनम् । उ । प्र । शँसिषम् ॥२०४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 204
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 10;
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पदार्थ -
हे मनुष्यो ! (जनानां वः) आप जन्मधारियों का (तरणिम्) नौकारूप अर्थात् नाव के समान तारक, विपत्तिरूप नदियों से पार करनेवाले, (गोमतः) प्रशस्त गौओं से युक्त, प्रशस्त भूमियों से युक्त, प्रशस्त वाणियों से युक्त, प्रशस्त इन्द्रियों से युक्त, प्रशस्त किरणों से युक्त और प्रशस्त अन्तःप्रकाश से युक्त (वाजस्य) ऐश्वर्य के (त्रदम्) प्राप्त करानेवाले इन्द्र नामक परमात्मा, जीवात्मा, राजा और सूर्य की (समानम् उ) सप्राण होकर, सोत्साह (प्रशंसिषम्) मैं प्रशंसा करता हूँ ॥ पणि लोग इन्द्र की गौओं को चुराकर पर्वत की गुफा में छिपा देते हैं। इन्द्र सरमा को दूती बनाकर अङ्गिरस्, सोम और बृहस्पति की सहायता से गुफा तोड़कर उन्हें छुड़ॎता है, यह वृत्त वेद में बहुत बार वर्णित हुआ है। अध्यात्म-क्षेत्र में गौएँ अन्तःप्रकाश की किरणें या मन की सात्त्विक वृत्तियाँ हैं, इन्द्र परमात्मा अथवा जीवात्मा है, पणि उन गौओं को चुरानेवाली तामसिक मनोवृत्तियाँ हैं। अधिदैवत क्षेत्र में गौएँ किरणें हैं, इन्द्र सूर्य है, पणि मेघ अथवा अन्धकारपूर्ण रात्रियाँ हैं। राष्ट्रिय क्षेत्र में गौएँ गाय पशु या भूमि आदि सम्पत्तियाँ हैं, इन्द्र राष्ट्र का पालक राजा है, और पणि उन सम्पत्तियों का अपहरण करनेवाले लुटेरे शत्रु हैं। इन्द्र नामक परमात्मा, जीवात्मा, सूर्य और राजा उन-उन पणियों को पराजित करके उनकी गुफा को तोड़कर उन गौओं को पुनः प्राप्त करके सत्पात्रों को उनका दान करते हैं। इसी प्रसङ्ग से इस मन्त्र में तृद धातु दानार्थक हो गयी है ॥१॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। इन्द्र में तरणि (नौका) का आरोप होने से रूपक है ॥१॥

भावार्थ - नौका के समान परमात्मा संसार-सागर से जनों का तारक, जीवात्मा कुमार्ग से इन्द्रियों का तारक, सूर्य अन्धकार या रोग से मनुष्यों का तारक, और राजा से विपत्तियों से प्रजाओं का तारक होता है। ये अपने-अपने क्षेत्र में यथायोग्य दिव्य प्रकाशरूप, दिव्य इन्द्रियरूप, किरणरूप, गायरूप, और भूमिरूप गौओं को शत्रु के अधिकार से वापस लौटानेवाले हैं। अतः इनकी प्रशंसा, गुण-वर्णन और सेवन सबको करना चाहिए॥१॥

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