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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 226
ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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इ꣡न्द्र꣢ उ꣣क्थे꣢भि꣣र्म꣡न्दि꣢ष्ठो꣡ वा꣡जा꣢नां च꣣ वा꣡ज꣢पतिः । ह꣡रि꣢वान्त्सु꣣ता꣢ना꣣ꣳ स꣡खा꣢ ॥२२६
स्वर सहित पद पाठइ꣡न्द्रः꣢꣯ । उ꣣क्थे꣡भिः꣢ । म꣡न्दि꣢꣯ष्ठः । वा꣡जा꣢꣯नाम् । च꣣ । वा꣡ज꣢꣯पतिः । वा꣡ज꣢꣯ । प꣣तिः । ह꣡रि꣢꣯वान् । सु꣣ता꣢ना꣢म् । स꣡खा꣢꣯ । स । खा꣣ ॥२२६॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्र उक्थेभिर्मन्दिष्ठो वाजानां च वाजपतिः । हरिवान्त्सुतानाꣳ सखा ॥२२६
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्रः । उक्थेभिः । मन्दिष्ठः । वाजानाम् । च । वाजपतिः । वाज । पतिः । हरिवान् । सुतानाम् । सखा । स । खा ॥२२६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 226
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 12;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 12;
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विषय - अगले मन्त्र में यह वर्णन है कि परमेश्वर कैसा है, और राजा कैसा हो।
पदार्थ -
प्रथम—परमेश्वर के पक्ष में। (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान्, विघ्नों को विदीर्ण करनेवाला, सुख आदि का प्रदाता परमेश्वर (उक्थेभिः) वेदमन्त्रों से (मन्दिष्ठः) अतिशय आनन्दित करनेवाला, (वाजानां च) तथा सब बलों का (वाजपतिः) बलपति, (हरिवान्) प्रशस्त प्राणवाला, और (सुतानाम्) सब पुत्र-पुत्रियों का (सखा) मित्र है ॥ द्वितीय—राजा के पक्ष में। (इन्द्रः) राजा (उक्थेभिः) कीर्तियों से (मन्दिष्ठः) सबको अत्यन्त आनन्द देनेवाला, (वाजानां च) सब प्रकार के अन्नों, धनों, बलों और विज्ञानों का (वाजपतिः) स्वामी, (हरिवान्) जितेन्द्रिय अथवा राज्य में विद्युत् आदि से चलनेवाले तीव्रगामी भूमियान, जलयान और विमानों का प्रबन्ध करनेवाला और (सुतानाम्) पुत्रतुल्य प्रजाजनों का (सखा) मित्र हो ॥४॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है ‘वाजा, वाज’ में छेकानुप्रास है ॥४॥
भावार्थ - जैसे विश्व का सम्राट् परमेश्वर अनेक प्रकार के गुण-समूहों का अग्रणी है, वैसे ही प्रजाओं के बीच जो मनुष्य यशस्वी, यश देनेवाला, धनपति, बलवान्, विज्ञानी, जितेन्द्रिय, सुप्रबन्धक और सबके साथ सौहार्द से बरतनेवाला हो, उसी को राजा के पद पर अभिषिक्त करना चाहिए ॥४॥
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