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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 276
ऋषिः - जमदग्निर्भार्गवः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
7
ब꣢ण्म꣣हा꣡ꣳ अ꣢सि सू꣣र्य ब꣡डा꣢दित्य म꣣हा꣡ꣳ अ꣢सि । म꣣ह꣡स्ते꣢ स꣣तो꣡ म꣢हि꣣मा꣡ प꣢निष्टम म꣣ह्ना꣡ दे꣢व म꣣हा꣡ꣳ अ꣢सि ॥२७६॥
स्वर सहित पद पाठब꣢ट् । म꣣हा꣢न् । अ꣢सि । सूर्य । ब꣢ट् । आ꣣दित्य । आ । दित्य । महा꣢न् । अ꣣सि । महः꣢ । ते꣣ । सतः꣢ । म꣢हिमा꣢ । प꣣निष्टम । मह्ना꣢ । दे꣣व । महा꣢न् । अ꣣सि ॥२७६॥
स्वर रहित मन्त्र
बण्महाꣳ असि सूर्य बडादित्य महाꣳ असि । महस्ते सतो महिमा पनिष्टम मह्ना देव महाꣳ असि ॥२७६॥
स्वर रहित पद पाठ
बट् । महान् । असि । सूर्य । बट् । आदित्य । आ । दित्य । महान् । असि । महः । ते । सतः । महिमा । पनिष्टम । मह्ना । देव । महान् । असि ॥२७६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 276
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 5;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 5;
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विषय - अगले मन्त्र का सूर्य देवता है। सूर्य नाम से परमेश्वर, राजा, आचार्य आदि की स्तुति की गयी है।
पदार्थ -
प्रथम—परमेश्वर के पक्ष में। (बट्) सचमुच हे (सूर्य) सर्वव्यापक, सर्वजगत् को उत्पन्न करनेवाले, दुष्टों को प्रकंपित करनेवाले, सूर्यसदृश प्रकाशमान एवं सर्वप्रकाशक जगदीश्वर ! आप (महान्) अतिशय महान् (असि) हो। (बट्) सचमुच, हे (आदित्य) अविनाशी-स्वरूप परमात्मन् ! आप (महान्) परम महिमावाले (असि) हो। हे (पनिष्टम) अतिशय स्तुति के पात्र परब्रह्म परमेश्वर ! (महः) महान् (सतः) होते हुए (ते) आपकी (महिमा) महिमा (महान्) अपार है। (मह्ना) महिमा से, आप (महान्) सबसे बड़े (असि) हो ॥ द्वितीय—राजा के पक्ष में। (बट्) सचमुच, हे (सूर्य) अपने राष्ट्र में सूर्य के समान विद्या का प्रकाश फैलानेवाले राजन् ! आप (महान्) बड़े दिग्विजेता (असि) हो। (बट्) सचमुच, हे (आदित्य) राष्ट्रभूमि के पुत्र अर्थात् राष्ट्रवासियों द्वारा मत देकर राज्य के अन्दर से ही चुने हुए राजन् ! आप (महान्) प्रजापालनरूप महान् कर्मवाले (असि) हो। हे (पनिष्टम) व्यवहार के श्रेष्ठ ज्ञाता ! (महः सतः) प्रजा के पूज्य होते हुए (ते) आपकी (महिमा) गरिमा (महान्) बहुत बड़ी है, क्योंकि आपमें मनुस्मृति (७।४) के अनुसार इन्द्र, वायु, यम, सूर्य आदि सब देवों के गुण विद्यमान हैं। हे (देव) प्रजाओं को सुख देनेवाले राजन् ! आप (मह्ना) गुणों के गौरव के कारण (महान्) बड़े कीर्तिशाली (असि) हो ॥ तृतीय—आचार्य के पक्ष में। (बट्) सचमुच, हे (सूर्य) प्रकाशमय सूर्य के समान विद्या के प्रकाश से परिपूर्ण आचार्यवर ! आप (महान्) महान् पाण्डित्य से युक्त (असि) हो। (बट्) सचमुच, हे (आदित्य) आदित्य ब्रह्मचारी ! आप (महान्) महान् व्रतों का अनुष्ठान करनेवाले (असि) हो। हे (पनिष्टम) अत्यधिक विद्याव्यवहार के ज्ञाता ! (महः सतः) शिष्यों के पूज्य (ते) आपकी (महिमा) महिमा (महान्) अपार है। हे (देव) दिव्यगुणोंवाले आचार्यप्रवर ! आप (मह्ना) विद्या, शिक्षणकला आदि की महिमा से (महान्) गौरवशाली (असि) हो ॥४॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है ॥४॥
भावार्थ - ब्रह्माण्ड में परमेश्वर, राष्ट्र में राजा और गुरुकुल में तीनों ही महान्, परोपकारी और कीर्तिमान् हैं। उनसे यथायोग्य उपकार सबको ग्रहण करना चाहिए ॥४॥
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