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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 279
ऋषिः - देवातिथिः काण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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य꣡दि꣢न्द्र꣣ प्रा꣢꣫गपा꣣गु꣢द꣣꣬ग्न्य꣢꣯ग्वा हू꣣य꣢से꣣ नृ꣡भिः꣢ । सि꣡मा꣢ पु꣣रू꣡ नृषू꣢꣯तो अ꣣स्या꣢न꣣वे꣢ऽसि꣢ प्रशर्ध तु꣣र्व꣡शे꣢ ॥२७९॥

स्वर सहित पद पाठ

य꣢त् । इ꣣न्द्र । प्रा꣢क् । अ꣡पा꣢꣯क् । अ꣡प꣢꣯ । अ꣣क् । उ꣡द꣢꣯क् । उत् । अ꣣क् । न्य꣢꣯क् । नि । अ꣣क् । वा । हूय꣡से꣢ । नृ꣡भिः꣢꣯ । सि꣡म꣢꣯ । पु꣣रू꣢ । नृ꣡षू꣢꣯तः । नृ । सू꣣तः । असि । आ꣡न꣢꣯वे । अ꣡सि꣢꣯ । प्र꣣शर्ध । प्र । शर्द्ध । तु꣡र्वशे꣢ ॥२७९॥


स्वर रहित मन्त्र

यदिन्द्र प्रागपागुदग्न्यग्वा हूयसे नृभिः । सिमा पुरू नृषूतो अस्यानवेऽसि प्रशर्ध तुर्वशे ॥२७९॥


स्वर रहित पद पाठ

यत् । इन्द्र । प्राक् । अपाक् । अप । अक् । उदक् । उत् । अक् । न्यक् । नि । अक् । वा । हूयसे । नृभिः । सिम । पुरू । नृषूतः । नृ । सूतः । असि । आनवे । असि । प्रशर्ध । प्र । शर्द्ध । तुर्वशे ॥२७९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 279
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 7
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 5;
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पदार्थ -
(यत्) क्योंकि, (इन्द्र) हे जगदीश्वर ! तू (प्राक्) पूर्व दिशा में, (अपाक्) पश्चिम दिशा में, (उदक्) उत्तर दिशा में (न्यक् वा) और दक्षिण दिशा में (नृभिः) स्तोता जनों के द्वारा (हूयसे) पुकारा जाता तथा महिमा गान किया जाता है, इस कारण (नृषूतः) उन स्तोता जनों के द्वारा प्रेरित-प्रचारित होकर तू (पुरु) बहुत रूपों में (सिमा) सर्वत्र (आनवे) मानव-जाति में (असि) विदित हो जाता है। (प्रशर्ध) हे प्रकृष्ट रूप से शत्रुओं को परास्त करनेवाले ! तू (तुर्वशे) मार्ग में आनेवाली विघ्नबाधाओं के विनाशक पुरुषार्थी मनुष्य में, उसकी सहायता के लिए (असि) विद्यमान रहता है ॥७॥

भावार्थ - दिशा-दिशा में परमात्मा का प्रचार हमें करना चाहिए, तभी मानव जाति का कल्याण हो सकता है ॥७॥ इस मन्त्र पर सायण ने यह लिखा है कि अनु नाम का एक राजा था, उसका राजर्षि पुत्र ‘आनव’ है, और ‘तुर्वश’ भी एक राजा का नाम है। उसका यह व्याख्यान असंगत है, क्योंकि सृष्टि के आदिकाल में प्रादुर्भूत वेदों में परवर्ती मानव-इतिहास का वर्णन असंभव है। निघण्टु में अनु और तुर्वश मनुष्यवाची नामों में पठित होने से ऐतिहासिक नाम नहीं हैं ॥

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