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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 294
ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्रः छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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इ꣣म꣡ इ꣡न्द्र꣣ म꣡दा꣢य ते꣣ सो꣡मा꣢श्चिकित्र उ꣣क्थि꣢नः꣣ । म꣡धोः꣢ पपा꣣न꣡ उप꣢꣯ नो꣣ गि꣡रः꣢ शृणु꣣ रा꣡स्व꣢ स्तो꣣त्रा꣡य꣢ गिर्वणः ॥२९४

स्वर सहित पद पाठ

इ꣣मे꣢ । इ꣣न्द्र । म꣡दा꣢꣯य । ते꣣ । सो꣡माः꣢꣯ । चि꣣कित्रे । उक्थि꣡नः꣢ । म꣡धोः꣢꣯ । प꣣पानः꣢ । उ꣡प꣢꣯ । नः꣣ । गि꣡रः꣢꣯ । शृ꣣णु । रा꣡स्व꣢꣯ । स्तो꣣त्रा꣡य꣢ । गि꣣र्वणः । गिः । वनः ॥२९४॥


स्वर रहित मन्त्र

इम इन्द्र मदाय ते सोमाश्चिकित्र उक्थिनः । मधोः पपान उप नो गिरः शृणु रास्व स्तोत्राय गिर्वणः ॥२९४


स्वर रहित पद पाठ

इमे । इन्द्र । मदाय । ते । सोमाः । चिकित्रे । उक्थिनः । मधोः । पपानः । उप । नः । गिरः । शृणु । रास्व । स्तोत्राय । गिर्वणः । गिः । वनः ॥२९४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 294
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 7;
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पदार्थ -
(इमे) ये (उक्थिनः) स्तोत्रयुक्त (सोमाः) हमारे श्रद्धारस, हे (इन्द्र) परमेश्वर ! (ते) आपकी (मदाय) तृप्ति के लिए (चिकित्रे) जाने गये हैं, सर्वविदित हैं। हमारे (मधोः) मधुर श्रद्धारस का (पपानः) पान करते हुए (नः) हमारी (गिरः) प्रार्थना-वाणियों को (उप शृणु) समीपता से सुनिए। हे (गिर्वणः) वाणियों द्वारा सेवन करने अथवा याचना करने योग्य परमात्मन् ! आप (स्तोत्राय) मुझ स्तुतिकर्ता को (रास्व) अभीष्ट फल प्रदान कीजिए ॥ अतिथि के पक्ष में भी अर्थयोजना कर लेनी चाहिए। उस पक्ष में ‘उक्थिनः सोमाः’ से प्रशंसित सोमादि ओषधियों के रस अभिप्रेत हैं। उनसे सत्कृत होकर वह गृहस्थों की प्रार्थना को सुनकर उन्हें अभीष्ट उपदेश आदि प्रदान करे ॥२॥

भावार्थ - परमेश्वर और अतिथि हमारी प्रार्थना को सुनकर अभीष्ट फल हमें प्रदान करें ॥२॥

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