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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 320
ऋषिः - वेनो भार्गवः देवता - वेनः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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ना꣡के꣢ सुप꣣र्ण꣢꣯मुप꣣ य꣡त्पत꣢꣯न्तꣳ हृ꣣दा꣡ वेन꣢꣯न्तो अ꣣भ्य꣡च꣢क्षत त्वा । हि꣡र꣢ण्यपक्षं꣣ व꣡रु꣢णस्य दू꣣तं꣢ य꣣म꣢स्य꣣ यो꣡नौ꣢ शकु꣣नं꣡ भु꣢र꣣ण्यु꣢म् ॥३२०॥

स्वर सहित पद पाठ

ना꣡के꣢꣯ । सु꣣पर्ण꣢म् । सु꣣ । पर्ण꣢म् । उ꣡प꣢꣯ । यत् । प꣡त꣢꣯न्तम् । हृ꣣दा꣢ । वे꣡न꣢꣯न्तः । अ꣣भ्य꣡च꣢क्षत । अ꣣भि । अ꣡च꣢꣯क्षत । त्वा꣣ । हि꣡र꣢꣯ण्यपक्ष꣣म् । हि꣡र꣢꣯ण्य । प꣣क्षम् । व꣡रु꣢꣯णस्य । दू꣣त꣢म् । य꣣म꣡स्य꣢ । यो꣡नौ꣢꣯ । श꣣कुन꣢म् । भु꣣रण्यु꣢म् ॥३२०॥


स्वर रहित मन्त्र

नाके सुपर्णमुप यत्पतन्तꣳ हृदा वेनन्तो अभ्यचक्षत त्वा । हिरण्यपक्षं वरुणस्य दूतं यमस्य योनौ शकुनं भुरण्युम् ॥३२०॥


स्वर रहित पद पाठ

नाके । सुपर्णम् । सु । पर्णम् । उप । यत् । पतन्तम् । हृदा । वेनन्तः । अभ्यचक्षत । अभि । अचक्षत । त्वा । हिरण्यपक्षम् । हिरण्य । पक्षम् । वरुणस्य । दूतम् । यमस्य । योनौ । शकुनम् । भुरण्युम् ॥३२०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 320
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 9;
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पदार्थ -
हे इन्द्र परमात्मन् ! (नाके) आत्मलोक में (उपपतन्तम्) पहुँचते हुए, (हिरण्यपक्षम्) ज्योतिरूप पंखोंवाले, (वरुणस्य दूतम्) पापनिवारक मन के प्रेरक, (यमस्य) शरीरस्थ इन्द्रियों के नियामक जीवात्मा के (योनौ) हृदयरूप गृह में उदित, (शकुनम्) शक्तिशाली, (भुरण्युम्) धारक और पोषक, (सुपर्णम्) शुभ पालन-गुणों से युक्त (त्वा) आपकी (यत्) जब, स्तोता जन (वेनन्तः) सच्ची कामना करते हैं, तब वे (हृदा) मन से (अभ्य- चक्षत) आपका साक्षात्कार कर लेते हैं, जैसे (नाके) मध्याह्नाकाश में (उपपतन्तम्) जाते हुए (हिरण्यपक्षम्) किरणरूप सुनहरे पंखोंवाले, (वरुणस्य दूतम्) रोगनिवारक अन्तरिक्षस्थानीय वायु के (दूतम्) दूत के समान उपकारक (यमस्य) रथ, यन्त्र आदियों को नियन्त्रित करनेवाले वैद्युत अग्नि के (योनौ) गृहरूप अन्तरिक्ष में (शकुनम्) पक्षी के समान विद्यमान (भुरण्युम्) भ्रमणशील (सुपर्णम्) सूर्य को, लोग (अभ्यचक्षत) आँख से देखते हैं ॥८॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार और उपमाध्वनि है ॥८॥

भावार्थ - जो मनुष्य उत्कण्ठापूर्वक परमेश्वर की कामना करते हैं, वे मन द्वारा उसका वैसे ही साक्षात्कार कर लेते हैं, जैसे आँख से सूर्य को देखते हैं ॥८॥

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