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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 356
ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः
देवता - मरुतः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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य꣢दी꣣ व꣡ह꣢न्त्या꣣श꣢वो꣣ भ्रा꣡ज꣢माना꣣ र꣢थे꣣ष्वा꣢ । पि꣡ब꣢न्तो मदि꣣रं꣢꣫ मधु꣣ त꣢त्र꣣ श्र꣡वा꣢ꣳसि कृण्वते ॥३५६
स्वर सहित पद पाठय꣡दि꣢꣯ । व꣡ह꣢꣯न्ति । आ꣣श꣡वः꣢ । भ्रा꣡ज꣢꣯मानाः । र꣡थे꣢꣯षु । आ । पि꣡ब꣢꣯न्तः । म꣣दिर꣢म् । म꣡धु꣢꣯ । त꣡त्र꣢꣯ । श्र꣡वाँ꣢꣯सि । कृ꣣ण्वते ॥३५६॥
स्वर रहित मन्त्र
यदी वहन्त्याशवो भ्राजमाना रथेष्वा । पिबन्तो मदिरं मधु तत्र श्रवाꣳसि कृण्वते ॥३५६
स्वर रहित पद पाठ
यदि । वहन्ति । आशवः । भ्राजमानाः । रथेषु । आ । पिबन्तः । मदिरम् । मधु । तत्र । श्रवाँसि । कृण्वते ॥३५६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 356
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 1;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 1;
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विषय - अगली ऋचा के ‘मरुतः’ देवता हैं। इसमें इन्द्रसहचारी मरुतों का शरीर में कार्य वर्णित किया गया है।
पदार्थ -
(यदि) जिस समय (रथेषु) देहरूप रथों में (भ्राजमानाः) तेज से दीप्यमान (आशवः) शीघ्रगामी मन, बुद्धि, ज्ञानेन्द्रिय रूप शीर्षण्य प्राण (मदिरम्) आनन्दजनक (मधु) अपने-अपने विषयों संकल्प, अध्यवसाय, रूप, रस, गन्ध, शब्द, स्पर्श के मधुर रस को (पिबन्तः) पान करते हुए (आ वहन्ति) रथी जीवात्मा को जीवन-यात्रा कराते हैं, (तत्र) उस समय (श्रवांसि) यशों को (कृण्वते) उत्पन्न करते हैं ॥५॥
भावार्थ - देहरथ में नियुक्त मन, बुद्धि एवं ज्ञानेन्द्रियों का ही यह कार्य है कि वे जीवात्मा के ज्ञान में साधन बनकर उसे यशस्वी बनाते हैं ॥५॥
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