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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 414
ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - इन्द्रः छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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य꣢दु꣣दी꣡र꣢त आ꣣ज꣡यो꣢ धृ꣣ष्ण꣡वे꣢ धीयते꣣ ध꣡न꣢म् । यु꣣ङ्क्ष्वा꣡ म꣢द꣣च्यु꣢ता꣣ ह꣢री꣣ क꣢꣫ꣳ हनः꣣ कं꣡ वसौ꣢꣯ दधो꣣ऽस्मा꣡ꣳ इ꣢न्द्र꣣ व꣡सौ꣢ दधः ॥४१४॥

स्वर सहित पद पाठ

य꣢त् । उ꣣दी꣡र꣢ते । उत् । ई꣡र꣢꣯ते । आ꣣ज꣡यः꣢ । धृ꣣ष्ण꣡वे꣢ । धी꣣यते । ध꣡न꣢꣯म् । युङ्क्ष्व꣢ । म꣣दच्यु꣡ता꣢ । म꣣द । च्यु꣡ता꣢꣯ । हरी꣣इ꣡ति꣢ । कम् । ह꣡नः꣢꣯ । कं । व꣡सौ꣢꣯ । द꣣धः । अस्मा꣢न् । इ꣣न्द्र । व꣡सौ꣢꣯ । द꣣धः ॥४१४॥


स्वर रहित मन्त्र

यदुदीरत आजयो धृष्णवे धीयते धनम् । युङ्क्ष्वा मदच्युता हरी कꣳ हनः कं वसौ दधोऽस्माꣳ इन्द्र वसौ दधः ॥४१४॥


स्वर रहित पद पाठ

यत् । उदीरते । उत् । ईरते । आजयः । धृष्णवे । धीयते । धनम् । युङ्क्ष्व । मदच्युता । मद । च्युता । हरीइति । कम् । हनः । कं । वसौ । दधः । अस्मान् । इन्द्र । वसौ । दधः ॥४१४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 414
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 7;
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पदार्थ -
(यत्) जब (आजयः) देवासुरसंग्राम (उदीरते) उपस्थित होते हैं, तब (धृष्णवे) जो शत्रु का पराजय कर सकता है, उसे ही (धनम्) ऐश्वर्य (धीयते) मिलता है। इसलिए हे (इन्द्र) मेरे अन्तरात्मन्, सेनापति अथवा राजन् ! तुम (मदच्युता) शत्रुओं के मद को चूर करनेवाले (हरी) ज्ञानेन्द्रिय-कर्मेन्द्रिय रूप घोड़ों को अथवा युद्धरथ को चलाने के साधनभूत जल-अग्नि रूप या वायु-विद्युत् रूप घोड़ों को (युङ्क्ष्व) कार्य में नियुक्त करो। (कम्) किसी को अर्थात् शत्रुजन को (हनः) विनष्ट करो, (कम्) किसी को अर्थात् मित्रजन को (वसौ) ऐश्वर्य में (दधः) स्थापित करो। (अस्मान्) दिव्य कर्मों में संग्लन हम धार्मिक लोगों को (वसौ) ऐश्वर्य में (दधः) स्थापित करो ॥६॥

भावार्थ - आन्तरिक अथवा बाह्य देवासुरसंग्रामों के उपस्थित होने पर सबको चाहिए कि असुरों को पराजित कर, देवों को उत्साहित कर विजयश्री और दिव्य तथा भौतिक सम्पदा प्राप्त करें ॥६॥ इस मन्त्र की व्याख्या में सायणाचार्य ने इस प्रकार इतिहास दर्शाया है—रहूगण का पुत्र गोतम कुरु-सृञ्जय राजाओं का पुरोहित था। उन राजाओं का शत्रुओं के साथ युद्ध होने पर उस ऋषि ने इस मन्त्र से इन्द्र की स्तुति करके स्वपक्षवालों के विजय की प्रार्थना की थी। रहूगण का पुत्र गोतम इस मन्त्र का द्रष्टा ऋषि है। उसके विषय का ही यह इतिहास जानना चाहिए ॥

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