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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 433
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः देवता - मरुतः छन्दः - द्विपदा विराट् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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क꣢ ईं꣣꣬ व्य꣢꣯क्ता꣣ न꣢रः꣣ स꣡नी꣢डा रु꣣द्र꣢स्य꣣ म꣢र्या꣣ अ꣢था꣣ स्व꣡श्वाः꣢ ॥४३३॥

स्वर सहित पद पाठ

के꣢ । ई꣣म् । व्य꣡क्ता꣢ । वि । अ꣣क्ताः । न꣡रः꣢꣯ । स꣡नी꣢꣯डाः । स । नी꣣डाः । रुद्र꣡स्य꣢ । म꣡र्याः꣢꣯ । अ꣡थ꣢꣯ । स्वश्वाः꣢꣯ । सु꣣ । अ꣡श्वाः꣢꣯ ॥४३३॥


स्वर रहित मन्त्र

क ईं व्यक्ता नरः सनीडा रुद्रस्य मर्या अथा स्वश्वाः ॥४३३॥


स्वर रहित पद पाठ

के । ईम् । व्यक्ता । वि । अक्ताः । नरः । सनीडाः । स । नीडाः । रुद्रस्य । मर्याः । अथ । स्वश्वाः । सु । अश्वाः ॥४३३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 433
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 7
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 9;
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पदार्थ -
(के ईम्) कौन ये (व्यक्ताः) प्रकाशमान, (नरः) नेता, (सनीडाः) समान आश्रयवाले, (रुद्रस्य मर्याः) रूद्र के पुत्र कहे जानेवाले, (अथ) और (स्वश्वाः) उत्तम घोड़ोंवाले हैं? यह प्रश्न है। इसका उत्तर इस प्रकार है— प्रथम—प्राणों के पक्ष में। ये (व्यक्ताः) विशेष गतिवाले, (नरः) शरीर के नेता, (सनीडाः) शरीर-रूप समान गृह में निवास करनेवाले, (रुद्रस्य मर्याः) रूद्र नामक मुख्य प्राण के सहचर, (स्वश्वाः) इन्द्रियरूप उत्तम घोड़ोंवाले, (मरुतः) प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान हैं ॥ द्वितीय—सैनिकों के पक्ष में। ये (व्यक्ताः) कन्धों पर बन्दूकें, पैरों में पादत्राण, छातियों पर सोने के तमगे, भुजाओं में विद्युत्-यन्त्र, शिरों पर शिरस्त्राण इन परिचायक चिह्नों से व्यक्त होते हुए, (सनीडाः) समान राष्ट्ररूप गृह में निवास करनेवाले, (रुद्रस्य मर्याः) शत्रुओं को रुलानेवाले सेनापति के मनुष्य (स्वश्वाः) उत्तम घोड़ों पर सवार अथवा उत्तम अग्नि, विद्युत् आदि को युद्ध-रथ में प्रयुक्त करनेवाले (मरुतः) राष्ट्र के वीर सैनिक हैं ॥७॥ इस मन्त्र में प्रश्न में ही उत्तर समाविष्ट होने से गूढोत्तर नामक प्रहेलिकालङ्कार है ॥७॥

भावार्थ - जैसे शरीर-रूप गृह में व्यवस्थापूर्वक अपना-अपना स्थान बाँटकर विभिन्न अङ्गों में आश्रय लेनेवाले प्राण शरीर की रक्षा करते हैं, वैसे ही राष्ट्र में निवास करनेवाले वीर सैनिक राष्ट्र की रक्षा करते हैं, इस कारण शरीर में प्राणों का और राष्ट्र में सैनिकों का उत्तम खाद्य, पेय आदि से सत्कार करना चाहिए ॥७॥

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