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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 452
ऋषिः - भुवन आप्त्यः साधनो वा भौवनः देवता - विश्वेदेवाः छन्दः - द्विपदा पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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इ꣣मा꣢꣫ नु कं꣣ भु꣡व꣢ना सीषधे꣣मे꣡न्द्र꣢श्च꣣ वि꣡श्वे꣢ च दे꣣वाः꣢ ॥४५२॥

स्वर सहित पद पाठ

इ꣣मा꣢ । नु । क꣣म् । भु꣡व꣢꣯ना । सी꣣षधेम । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । च꣣ । वि꣡श्वे꣢꣯ । च꣣ । देवाः꣢ ॥४५२॥


स्वर रहित मन्त्र

इमा नु कं भुवना सीषधेमेन्द्रश्च विश्वे च देवाः ॥४५२॥


स्वर रहित पद पाठ

इमा । नु । कम् । भुवना । सीषधेम । इन्द्रः । च । विश्वे । च । देवाः ॥४५२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 452
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 11;
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पदार्थ -
प्रथम—अध्यात्मपक्ष में। हम, (इन्द्रः च) तथा द्रष्टा हमारा जीवात्मा, (विश्वेदेवाः च) और ज्ञान के साधन सब मन, बुद्धि तथा ज्ञानेन्द्रियाँ (इमा भुवना) इन अन्नमय, प्राणमय आदि कोश रूप सब भुवनों को (कम्) सुखपूर्वक (सीषधेम) प्रसाधित करें ॥ द्वितीय—राष्ट्र के पक्ष में। हम प्रजाजन, (इन्द्रः च) और वीर राजनीतिज्ञ राजा, (विश्वेदेवाः च) और सब विद्वान् राजसभासद्, मिलकर (इमा भुवना) राष्ट्र के इन सब नगरों को (कम्) सुखपूर्वक (सीषधेम) अलङ्कृत और समृद्ध करें ॥६॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है ॥६॥

भावार्थ - जीवात्मा, मन, बुद्धि आदि की सहायता से शरीर के और राजा, मन्त्री, सभासदों आदि की सहायता से राष्ट्र के उत्कर्ष को भली-भाँति सिद्ध कर सब लोग सफल जन्मवाले हों ॥६॥

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