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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 484
ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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प꣡व꣢मानो अजीजनद्दि꣣व꣢श्चि꣣त्रं꣡ न त꣢꣯न्य꣣तु꣢म् । ज्यो꣡ति꣢र्वैश्वान꣣रं꣢ बृ꣣ह꣢त् ॥४८४॥
स्वर सहित पद पाठप꣡व꣢꣯मानः । अ꣣जीजनत् । दिवः꣢ । चि꣣त्र꣢म् । न । त꣣न्यतु꣢म् । ज्यो꣡तिः꣢ । वै꣣श्वानर꣢म् । वै꣣श्व । नर꣢म् । बृ꣣ह꣢त् ॥४८४॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमानो अजीजनद्दिवश्चित्रं न तन्यतुम् । ज्योतिर्वैश्वानरं बृहत् ॥४८४॥
स्वर रहित पद पाठ
पवमानः । अजीजनत् । दिवः । चित्रम् । न । तन्यतुम् । ज्योतिः । वैश्वानरम् । वैश्व । नरम् । बृहत् ॥४८४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 484
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2;
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विषय - अगले मन्त्र में सोम परमात्मा से प्राप्त ज्योति का वर्णन है।
पदार्थ -
(पवमानः) पवित्रतादायक सोम परमेश्वर (दिवः) आकाश की (चित्रम्) चित्र-विचित्र (तन्यतुं न) विद्युत् के समान (बृहत्) विस्तीर्ण (वैश्वानरम्) विश्व का नेतृत्व करनेवाली (ज्योतिः) दिव्य ज्योति को (अजीजनत्) उत्पन्न कर देता है ॥८॥ इस मन्त्र में उपमालङ्कार है ॥८॥
भावार्थ - ईश्वर की आराधना से हृदय में विद्युत् के समान अद्भुत ज्योति परिस्फुरित हो जाती है, जिससे मनुष्य विवेकख्याति प्राप्त कर लेता है ॥८॥
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