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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 499
ऋषिः - उचथ्य आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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अ꣡ध्व꣢र्यो꣣ अ꣡द्रि꣢भिः सु꣣त꣡ꣳ सोमं꣢꣯ प꣣वि꣢त्र꣣ आ꣡ न꣢य । पु꣣नाही꣡न्द्रा꣢य꣣ पा꣡त꣢वे ॥४९९॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡ध्व꣢꣯र्यो । अ꣡द्रि꣢꣯भिः । अ । द्रि꣣भिः । सुत꣢म् । सो꣡म꣢꣯म् । प꣣वि꣡त्रे꣢ । आ । न꣣य । पुनाहि꣢ । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । पा꣡त꣢꣯वे ॥४९९॥
स्वर रहित मन्त्र
अध्वर्यो अद्रिभिः सुतꣳ सोमं पवित्र आ नय । पुनाहीन्द्राय पातवे ॥४९९॥
स्वर रहित पद पाठ
अध्वर्यो । अद्रिभिः । अ । द्रिभिः । सुतम् । सोमम् । पवित्रे । आ । नय । पुनाहि । इन्द्राय । पातवे ॥४९९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 499
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 4;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 4;
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विषय - अगले मन्त्र में अध्वर्यु को प्रेरित किया गया है।
पदार्थ -
हे (अध्वर्यो) यज्ञविधि के निष्पादक अध्वर्यु नामक ऋत्विज् के समान ज्ञानयज्ञ को निष्पन्न करनेवाले मानव ! तू (अद्रिभिः) सिलबट्टों के सदृश ज्ञानेन्द्रियों से (सुतम्) अभिषुत (सोमम्) सोम ओषधि के रस के सदृश ज्ञानरस को (पवित्रे) दशापवित्र के सदृश मन में (आ नय) ला, उस ज्ञान-रूप सोम-रस को (इन्द्राय पातवे) जीवात्मा के पान के लिए (पुनाहि) मनन द्वारा शुद्ध कर ॥३॥ इस मन्त्र में श्लेष से अभिहित भौतिक सोमपरक द्वितीय अर्थ उपमान-भाव में परिणत हो रहा है ॥३॥
भावार्थ - जैसे यज्ञ में पीसने के साधन सिल-बट्टों से अभिषुत सोम दशापवित्र द्वारा छानकर ही पिया और पिलाया जाता है, वैसे ही ज्ञानार्जन की साधनभूत ज्ञानेन्द्रियों से अर्जित ज्ञान को मन से मनन द्वारा शुद्ध करना चाहिए ॥३॥
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