Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 523
ऋषिः - उशना काव्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
10

प्र꣡ तु द्र꣢꣯व꣣ प꣢रि꣣ को꣢शं꣣ नि꣡ षी꣢द꣣ नृ꣡भिः꣢ पुना꣣नो꣢ अ꣣भि꣡ वाज꣢꣯मर्ष । अ꣢श्वं꣣ न꣡ त्वा꣢ वा꣣जि꣡नं꣢ म꣣र्ज꣢य꣣न्तो꣡ऽच्छा꣣ ब꣣र्ही꣡ र꣢श꣣ना꣡भि꣢र्नयन्ति ॥५२३॥

स्वर सहित पद पाठ

प्र꣢ । तु । द्र꣣व । प꣡रि꣢꣯ । को꣡श꣢꣯म् । नि । सी꣣द । नृ꣡भिः꣢꣯ । पु꣣नानः꣢ । अ꣣भि꣢ । वा꣡ज꣢꣯म् । अ꣣र्ष । अ꣡श्व꣢꣯म् । न । त्वा꣣ । वाजि꣡न꣢म् । म꣣र्ज꣡य꣢न्तः । अ꣡च्छ꣢꣯ । ब꣣र्हिः꣢ । र꣣शना꣡भिः꣢ । न꣣यन्ति ॥५२३॥


स्वर रहित मन्त्र

प्र तु द्रव परि कोशं नि षीद नृभिः पुनानो अभि वाजमर्ष । अश्वं न त्वा वाजिनं मर्जयन्तोऽच्छा बर्ही रशनाभिर्नयन्ति ॥५२३॥


स्वर रहित पद पाठ

प्र । तु । द्रव । परि । कोशम् । नि । सीद । नृभिः । पुनानः । अभि । वाजम् । अर्ष । अश्वम् । न । त्वा । वाजिनम् । मर्जयन्तः । अच्छ । बर्हिः । रशनाभिः । नयन्ति ॥५२३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 523
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 6;
Acknowledgment

पदार्थ -
हे आत्मन् ! तू (तु) शीघ्र ही (प्र द्रव) उत्कृष्ट दिशा में दौड़, कोशम् आनन्दमय कोश में (परि निषीद) व्याप्त होकर स्थित हो, (नृभिः) आगे ले जानेवाले अपने पौरुषों से (पुनानः) मन, बुद्धि आदि को पवित्र करता हुआ (वाजम् अभि) देवासुरसंग्राम में (अर्ष) असुरों के पराजय के लिए जा। (वाजिनम्) ज्ञानवान् (त्वा) तुझे (मर्जयन्तः) सद्गुणों से अलङ्कृत करते हुए (रशनाभिः) यम-नियम की रस्सियों से नियन्त्रित करके, शिक्षक योगी जन (बर्हिः अच्छ) परब्रह्म के प्रति (नयन्ति) प्रेरित कर रहे हैं, (न) जैसे (वाजिनम्) बलवान् (अश्वम्) घोड़े को (मर्जयन्तः) साफ या अलङ्कृत करते हुए योद्धा लोग (रशनाभिः) लगामों से नियन्त्रित करके (बर्हिः अच्छ) संग्राम में (नयन्ति) ले जाते हैं ॥१॥ इस मन्त्र में उत्तरार्ध में श्लिष्टोपमालङ्कार है ॥१॥

भावार्थ - जैसे बलवान् घोड़े को योद्धा लोग लगामों से नियन्त्रित करके युद्ध में ले जाते हैं, वैसे ही योग-प्रशिक्षक लोग मनुष्य के आत्मा को यम, नियम आदि योग-साधनों से नियन्त्रित करके परब्रहम के प्रति ले जाएँ ॥१॥

इस भाष्य को एडिट करें
Top