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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 549
ऋषिः - अम्बरीषो वार्षागिर ऋजिष्वा भारद्वाजश्च
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
6
अ꣣भी꣡ नो꣢ वाज꣣सा꣡त꣢मꣳ र꣣यि꣡म꣢र्ष शत꣣स्पृ꣡ह꣢म् । इ꣡न्दो꣢ स꣣ह꣡स्र꣢भर्णसं तुविद्यु꣣म्नं꣡ वि꣢भा꣣स꣡ह꣢म् ॥५४९॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣भि꣢ । नः꣣ । वाजसा꣡त꣢मम् । वा꣣ज । सा꣡त꣢꣯मम् । र꣣यि꣢म् । अ꣣र्ष । शतस्पृ꣡ह꣢म् । श꣣त । स्पृ꣡ह꣢꣯म् । इ꣡न्दो꣢꣯ । स꣣ह꣡स्र꣢भर्णसम् । स꣣ह꣡स्र꣢ । भ꣣र्णसम् । तुविद्युम्न꣢म् । तु꣣वि । द्युम्न꣢म् । वि꣣भास꣡ह꣢म् । वि꣣भा । स꣡ह꣢꣯म् ॥५४९॥
स्वर रहित मन्त्र
अभी नो वाजसातमꣳ रयिमर्ष शतस्पृहम् । इन्दो सहस्रभर्णसं तुविद्युम्नं विभासहम् ॥५४९॥
स्वर रहित पद पाठ
अभि । नः । वाजसातमम् । वाज । सातमम् । रयिम् । अर्ष । शतस्पृहम् । शत । स्पृहम् । इन्दो । सहस्रभर्णसम् । सहस्र । भर्णसम् । तुविद्युम्नम् । तुवि । द्युम्नम् । विभासहम् । विभा । सहम् ॥५४९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 549
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 8;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 8;
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विषय - अगले मन्त्र में सोम परमात्मा से धन की प्रार्थना है।
पदार्थ -
हे (इन्दो) आनन्दरस से आर्द्र करनेवाले परमात्मन् ! आप (वाजसातमम्) अतिशय बल के प्रदाता, (शतस्पृहम्) बहुतों से स्पृहणीय, (सहस्रभर्णसम्) सहस्र गुणों को धारण करानेवाले अथवा सहस्रों जनों का पोषण करनेवाले, (तुविद्युम्नम्) बहुत यश को देनेवाले, (विभासहम्) शत्रु के प्रताप को अभिभूत करनेवाले (रयिम्) आध्यात्मिक तथा भौतिक ऐश्वर्य को (नः) हमें (अभि अर्ष) प्राप्त कराइए ॥५॥
भावार्थ - परमात्मा की कृपा से और अपने पुरुषार्थ से सब लोग सत्य, अहिंसा, अणिमा, महिमा, लघिमा आदि आध्यात्मिक तथा सोना, चाँदी, मणि, मोती आदि भौतिक धन प्राप्त कर सकते हैं, जिससे वे आत्मिक और शारीरिक बल, सहस्रों गुण, सहस्रों के पोषण का सामर्थ्य और कीर्ति प्राप्त करने में तथा शत्रु के तेज को परास्त करने में समर्थ हो जाते हैं ॥५॥
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