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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 578
ऋषिः - गौरवीतिः शाक्त्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - ककुप् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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प꣡व꣢स्व꣣ म꣡धु꣢मत्तम꣣ इ꣡न्द्रा꣢य सोम क्रतु꣣वि꣡त्त꣢मो꣣ म꣡दः꣢ । म꣡हि꣢ द्यु꣣क्ष꣡त꣢मो꣣ म꣡दः꣢ ॥५७८॥

स्वर सहित पद पाठ

प꣡व꣢꣯स्व । म꣡धु꣢꣯मत्तमः । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । सो꣣म । क्रतुवि꣡त्त꣢मः । क्र꣣तु । वि꣡त्त꣢꣯मः । म꣡दः꣢꣯ । म꣡हि꣢꣯ । द्यु꣣क्ष꣡त꣢मः । द्यु꣣क्ष꣡ । तमः꣢꣯ । म꣡दः꣢꣯ ॥५७८॥


स्वर रहित मन्त्र

पवस्व मधुमत्तम इन्द्राय सोम क्रतुवित्तमो मदः । महि द्युक्षतमो मदः ॥५७८॥


स्वर रहित पद पाठ

पवस्व । मधुमत्तमः । इन्द्राय । सोम । क्रतुवित्तमः । क्रतु । वित्तमः । मदः । महि । द्युक्षतमः । द्युक्ष । तमः । मदः ॥५७८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 578
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 11;
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पदार्थ -
हे (सोम) आनन्दरसागार परमात्मन् ! (मधुमत्तमः) सबसे अधिक मधुर, (क्रतुवित्तमः) सबसे अधिक प्रज्ञा और कर्म को प्राप्त करानेवाले, और (मदः) हर्षप्रदाता आप (इन्द्राय) मेरे आत्मा के लिए (पवस्व) आनन्द-रस को प्रवाहित कीजिए। (मदः) आपसे दिया हुआ आनन्द (महि) अत्यधिक (द्युक्षतमः) तेज का निवास करानेवाला होता है ॥१॥ इस मन्त्र में ‘तमो मदः’ की आवृत्ति में यमक अलङ्कार है। ‘तम, तमो, तमो’ में वृत्त्यनुप्रास है ॥१॥

भावार्थ - अत्यन्त मधुर, ज्ञान तथा कर्म के उपदेशक, आनन्ददाता परमात्मा का ध्यान कर-करके योगीजन अपार आनन्दरस से परिपूर्ण हो जाते हैं ॥१॥

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