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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 581
ऋषिः - कृतयशा आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - ककुप्
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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ए꣣त꣢मु꣣ त्यं꣡ म꣢द꣣च्यु꣡त꣢ꣳ स꣣ह꣡स्र꣢धारं वृष꣣भं꣡ दिवो꣣दु꣡ह꣢म् । वि꣢श्वा꣣ व꣡सू꣢नि꣣ बि꣡भ्र꣢तम् ॥५८१॥
स्वर सहित पद पाठए꣣त꣢म् । उ꣣ । त्य꣢म् । म꣣दच्यु꣡त꣢म् । म꣣द । च्यु꣡त꣢꣯म् । स꣣ह꣡स्र꣢धारम् । स꣣ह꣡स्र꣢ । धा꣣रम् । वृषभ꣢म् । दि꣣वोदु꣡ह꣢म् । दि꣣वः । दु꣡ह꣢꣯म् । वि꣡श्वा꣢꣯ । व꣡सू꣢꣯नि । बि꣡भ्र꣢꣯तम् ॥५८१॥
स्वर रहित मन्त्र
एतमु त्यं मदच्युतꣳ सहस्रधारं वृषभं दिवोदुहम् । विश्वा वसूनि बिभ्रतम् ॥५८१॥
स्वर रहित पद पाठ
एतम् । उ । त्यम् । मदच्युतम् । मद । च्युतम् । सहस्रधारम् । सहस्र । धारम् । वृषभम् । दिवोदुहम् । दिवः । दुहम् । विश्वा । वसूनि । बिभ्रतम् ॥५८१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 581
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 11;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 11;
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विषय - अगले मन्त्र में बताया गया है कि कैसे परमात्मा को श्रद्धारसों से सींचो।
पदार्थ -
(एतम् उ) इस, सबके समीपस्थ, (त्यम्) प्रसिद्ध, (मदच्युतम्) आनन्दस्रावी, (सहस्रधारम्) सत्य, अहिंसा, न्याय, दया आदि गुणों की सहस्र धाराएँ बहानेवाले, (वृषभम्) महाबली, (दिवोदुहम्) आकाशरूपी गाय को दुहनेवाले अर्थात् आकाश से सूर्य-किरणों, मेघजलों आदि की वर्षा करनेवाले, (विश्वा) सब (वसूनि) ऐश्वर्यों को (बिभ्रतम्) धारण करनेवाले सोम परमात्मा को (आ सोत) हृदय में प्रकट करो, तथा (परि षिञ्चत) श्रद्धारसों से सींचो ॥४॥
भावार्थ - मनुष्यों को चाहिए कि आनन्द की प्राप्ति के लिए रस के भण्डार और सहस्रों धाराओं से रस बरसानेवाले परमात्मा रूप सोम को अपने हृदय में श्रद्धाभाव से धारण करें ॥४॥
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