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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 596
ऋषिः - पवित्र आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - जगती
स्वरः - निषादः
काण्ड नाम - आरण्यं काण्डम्
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अ꣡रू꣢रुचदु꣣ष꣢सः꣢ पृ꣡श्नि꣢रग्रि꣣य꣢ उ꣣क्षा꣡ मि꣢मेति꣣ भु꣡व꣢नेषु वाज꣣युः꣢ । मा꣣यावि꣡नो꣢ ममिरे अस्य मा꣣य꣡या꣢ नृ꣣च꣡क्ष꣢सः पि꣣त꣢रो꣣ ग꣢र्भ꣣मा꣡द꣢धुः ॥५९६॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡रू꣢꣯रुचत् । उ꣣ष꣡सः꣢ । पृ꣡श्निः꣢꣯ । अ꣣ग्रियः꣢ । उ꣣क्षा꣢ । मि꣣मेति । भु꣡व꣢꣯नेषु । वा꣣जयुः꣢ । मा꣣यावि꣡नः꣢ । म꣣मिरे । अस्य । माय꣡या꣢ । नृ꣣च꣡क्ष꣢सः । नृ꣣ । च꣡क्ष꣢꣯सः । पि꣣त꣡रः꣢ । ग꣡र्भ꣢꣯म् । आ । द꣣धुः ॥५९६॥
स्वर रहित मन्त्र
अरूरुचदुषसः पृश्निरग्रिय उक्षा मिमेति भुवनेषु वाजयुः । मायाविनो ममिरे अस्य मायया नृचक्षसः पितरो गर्भमादधुः ॥५९६॥
स्वर रहित पद पाठ
अरूरुचत् । उषसः । पृश्निः । अग्रियः । उक्षा । मिमेति । भुवनेषु । वाजयुः । मायाविनः । ममिरे । अस्य । मायया । नृचक्षसः । नृ । चक्षसः । पितरः । गर्भम् । आ । दधुः ॥५९६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 596
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 2; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 2;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 2; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 2;
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विषय - अगले मन्त्र का पवमान देवता है। परमात्मा के ही कौशल से सूर्य आदि अपना-अपना कार्य करते हैं, इसका वर्णन है।
पदार्थ -
(अस्य) इस पवमान सोम के अर्थात् सर्वव्यापक प्रेरक परमात्मा के (मायया) बुद्धि और कर्म के कौशल से (अप्रियः) आगे रहनेवाला (पृश्निः) सूर्य (उषसः) उषाओं को (अरूरुचत्) चमकाता है और (उक्षा) वर्षक बादल (भुवनेषु) भूतलों पर (वाजयुः) मानो अन्न उत्पन्न करना चाहता हुआ (मिमेति) गर्जता है, (मायाविनः) मेधावियों के तुल्य विद्यमान पवन (ममिरे) अपनी गति से सुदीर्घ प्रदेशों को मापते हैं और (नृचक्षसः) मनुष्यों को प्रकाश देनेवाली (पितरः) पालक सूर्य-किरणें (गर्भम् आदधुः) ओषधियों में गर्भ धारण कराती हैं अथवा पानी को भाप बनाकर गर्भरूप में ग्रहण करती हैं ॥२॥
भावार्थ - परमात्मा ने ही अपने कौशलों से उषा, सूर्य, बादल, पवन एवं किरणों जैसे यन्त्र रचे हैं, जो हमारा बड़ा उपकार करते हैं ॥२॥
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