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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 639
ऋषिः - प्रस्कण्वः काण्वः
देवता - सूर्यः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - आरण्यं काण्डम्
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अ꣡यु꣢क्त स꣣प्त꣢ शु꣣न्ध्यु꣢वः꣣ सू꣢रो꣣ र꣡थ꣢स्य न꣣꣬प्त्र्यः꣢꣯ । ता꣡भि꣢र्याति꣣ स्व꣡यु꣢क्तिभिः ॥६३९॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡यु꣢꣯क्त । स꣣प्त꣢ । शु꣣न्ध्यु꣡वः꣢ । सू꣡रः꣢꣯ । र꣡थ꣢꣯स्य । न꣣प्त्यः꣢꣯ । ता꣡भिः꣢꣯ । या꣣ति । स्व꣡यु꣢꣯क्तिभिः । स्व । यु꣣क्तिभिः ॥६३९॥
स्वर रहित मन्त्र
अयुक्त सप्त शुन्ध्युवः सूरो रथस्य नप्त्र्यः । ताभिर्याति स्वयुक्तिभिः ॥६३९॥
स्वर रहित पद पाठ
अयुक्त । सप्त । शुन्ध्युवः । सूरः । रथस्य । नप्त्यः । ताभिः । याति । स्वयुक्तिभिः । स्व । युक्तिभिः ॥६३९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 639
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 5; मन्त्र » 13
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 5;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 5; मन्त्र » 13
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 5;
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विषय - अगले मन्त्र में सूर्य, जीवात्मा और परमात्मा का वर्णन है।
पदार्थ -
प्रथम—सूर्य के पक्ष में। (सूरः) सूर्यः (रथस्य)सौरमण्डलरूप रथ को (नप्त्र्यः) न गिरने देनेवाली (सप्त) सात (शुन्ध्युवः) शोधक किरणों को (अयुक्त) पृथिवी आदि ग्रह-उपग्रहों के साथ युक्त करता है। (स्वयुक्तिभिः) स्वयं युक्त की गयी (ताभिः) उन किरणों से, वह (याति) भूमण्डल आदि के उपकार के लिए चेष्टा करता है ॥ द्वितीय—जीवात्मा के पक्ष में। (सूरः) प्रेरक जीवात्मा (रथस्य) शरीर-रूप रथ को (नप्त्र्यः) न गिरने देनेवाली (शुन्ध्युवः) ज्ञान-शोधक ज्ञानेन्द्रिय, मन और बुद्धि (सप्त) इन सात को (अयुक्त) शरीर-रथ में जोड़ता है और (स्वयुक्तिभिः) स्वयं जोड़ी हुई (ताभिः) उनके द्वारा (याति) जीवन-यात्रा को करता है ॥ तृतीय—परमात्मा के पक्ष में। (सूरः) सूर्य, चन्द्र आदि लोकों को चलानेवाले परमात्मा ने (रथस्य) ब्रह्माण्डरूप रथ को (नप्त्र्यः) न गिरने देनेवाली (सप्त) सात (शुन्ध्युवः) शुद्ध भूमियों को अर्थात् भूः, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः, सत्यम् इन क्रमशः ऊपर-ऊपर विद्यमान सात लोकों को (अयुक्त) कार्य में नियुक्त किया है (स्वयुक्तिभिः) स्वयं नियुक्त की हुई उन सात भूमियों अर्थात् लोकों से, वह (याति) ब्रह्माण्ड-सञ्चालन के व्यापार को कर रहा है ॥१३॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है ॥१३॥
भावार्थ - सूर्य सात रंग की किरणों से सौरमण्डल का, जीवात्मा मन, बुद्धि तथा ज्ञानेन्द्रियरूप सात तत्त्वों से शरीर का और परमेश्वर स्वरचित सात लोकों से ब्रह्माण्ड का सञ्चालन करता है ॥१३॥
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