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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 659
ऋषिः - शतं वैखानसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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अ꣡च्छा꣢ समु꣣द्र꣢꣫मिन्द꣣वो꣢ऽस्तं꣣ गा꣢वो꣣ न꣢ धे꣣न꣡वः꣢ । अ꣡ग्म꣢न्नृ꣣त꣢स्य꣣ यो꣢नि꣣मा꣢ ॥६५९॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣡च्छ꣢꣯ । स꣣मु꣢द्रम् । स꣣म् । उ꣢द्रम् । इ꣡न्द꣢꣯वः । अ꣡स्त꣢꣯म् । गा꣡वः꣢꣯ । न । धे꣣न꣡वः꣢ । अ꣡ग्म꣢꣯न् । ऋ꣣त꣡स्य꣢ । यो꣡नि꣢꣯म् । आ ॥६५९॥


स्वर रहित मन्त्र

अच्छा समुद्रमिन्दवोऽस्तं गावो न धेनवः । अग्मन्नृतस्य योनिमा ॥६५९॥


स्वर रहित पद पाठ

अच्छ । समुद्रम् । सम् । उद्रम् । इन्दवः । अस्तम् । गावः । न । धेनवः । अग्मन् । ऋतस्य । योनिम् । आ ॥६५९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 659
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(इन्दवः) ब्रह्मानन्द-रस (समुद्रम् अच्छ) हृदय-समुद्र की ओर बहते हुए (ऋतस्य) सत्य के (योनिम्) गृहरूप मेरे अन्तरात्मा को (आ अग्मन्) प्राप्त हुए हैं। किस प्रकार? ( न) जैसे (धेनवः) दूध से तृप्ति प्रदान करनेवाली (गावः) गौएँ (अस्तम्) गोशाला को प्राप्त होती हैं ॥३॥ इस मन्त्र में उपमालङ्कार है ॥३॥

भावार्थ - जैसे गौएँ गोशाला को प्राप्त करके अपने दूध आदि से लोगों को तृप्त करती हैं, वैसे ही ब्रह्मानन्द हृदय और आत्मा में प्रविष्ट होकर उपासकों को तृप्ति प्रदान करते हैं ॥३॥ प्रथम अध्याय में प्रथम खण्ड समाप्त ॥

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