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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 663
ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनो जमदग्निर्वा
देवता - मित्रावरुणौ
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
आ꣡ नो꣢ मित्रावरुणा घृ꣣तै꣡र्गव्यू꣢꣯तिमुक्षतम् । म꣢ध्वा꣣ र꣡जा꣢ꣳसि सुक्रतू ॥६६३॥
स्वर सहित पद पाठआ꣢ । नः꣣ । मित्रा । मि । त्रा । वरुणा । घृतैः꣢ । ग꣡व्यू꣢꣯तिम् । गो । यू꣣तिम् । उक्षतम् । म꣡ध्वा꣢꣯ । र꣡जा꣢꣯ꣳसि । सुक्रतू । सु । क्रतूइ꣡ति꣢ ॥६६३॥
स्वर रहित मन्त्र
आ नो मित्रावरुणा घृतैर्गव्यूतिमुक्षतम् । मध्वा रजाꣳसि सुक्रतू ॥६६३॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । नः । मित्रा । मि । त्रा । वरुणा । घृतैः । गव्यूतिम् । गो । यूतिम् । उक्षतम् । मध्वा । रजाꣳसि । सुक्रतू । सु । क्रतूइति ॥६६३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 663
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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विषय - अगले मन्त्र में फिर मित्र वरुण नाम से परमात्मा और जीवात्मा की स्तुति की गयी है।
पदार्थ -
हे (शुचिव्रता) पवित्र कर्मोंवाले परमात्मा और जीवात्मा ! (उरुशंसा) बहुत प्रशंसा को प्राप्त, (नमोवृधा) नमस्कार को ग्रहण कर बढ़ानेवाले व नमस्कार के प्रदान से वृद्धि४ को प्राप्त तुम (दक्षस्य) बल की (मह्ना) महिमा से और (द्राघिष्ठाभिः) अतिशय दीर्घ क्रियाओं, सम्पत्तियों वा स्तुतियों से (राजथः) राजा बने हुए हो ॥२॥
भावार्थ - सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के सम्राट् महाबली परमेश्वर का ध्यान करके और देहपिण्ड के सम्राट् जीवात्मा को भली-भाँति उद्बोधन देकर सब स्त्री-पुरुषों को अपनी उन्नति करनी चाहिए ॥२॥
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