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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 674
ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
ए꣣ना꣡ विश्वा꣢꣯न्य꣣र्य꣢꣫ आ द्यु꣣म्ना꣢नि꣣ मा꣡नु꣢षाणाम् । सि꣡षा꣢सन्तो वनामहे ॥६७४॥
स्वर सहित पद पाठए꣣ना꣢ । वि꣡श्वा꣢꣯नि । अ꣡र्यः꣢ । आ । द्यु꣡म्ना꣡नि꣢ । मा꣡नु꣢꣯षाणाम् । सि꣡षा꣢꣯सन्तः । व꣣नामहे ॥६७४॥
स्वर रहित मन्त्र
एना विश्वान्यर्य आ द्युम्नानि मानुषाणाम् । सिषासन्तो वनामहे ॥६७४॥
स्वर रहित पद पाठ
एना । विश्वानि । अर्यः । आ । द्युम्नानि । मानुषाणाम् । सिषासन्तः । वनामहे ॥६७४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 674
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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विषय - तृतीय ऋचा पूर्वार्चिक में ५९३ क्रमाङ्क पर परमात्मा को सम्बोधित करके व्याख्यात की गयी है। यहाँ गुरु को सम्बोधन है।
पदार्थ -
हे हमारे अन्तःकरणों को पवित्र करनेवाले गुरुवर ! (अर्यः) विद्याओं के स्वामी आप (एना) इन (विश्वानि) सब (द्युम्नानि) विद्याधनों को (मानुषाणाम्) हम मननशील शिष्यों को (आ) प्राप्त कराओ। उन विद्याधनों को (सिषासन्तः) अन्यों को प्रदान करने की इच्छावाले हम (वनामहे) आपसे सीखते हैं ॥३॥
भावार्थ - जो मनुष्य गुरुओं के पास से अनेक प्रकार की भौतिक विद्याओं तथा आध्यात्मिक विद्याओं को पढ़कर अन्यों को पढ़ाते हैं, वे ही गुरु-ऋण से मुक्त होते हैं ॥३॥
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