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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 676
ऋषिः - सप्तर्षयः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - प्रगाथः(विषमा बृहती समा सतोबृहती)
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
8
दु꣣हान꣡ ऊध꣢꣯र्दि꣣व्यं꣡ मधु꣢꣯ प्रि꣣यं꣢ प्र꣣त्न꣢ꣳ स꣣ध꣢स्थ꣣मा꣡स꣢दत् । आ꣣पृ꣡च्छ्यं꣢ ध꣣रु꣡णं꣢ वा꣣꣬ज्य꣢꣯र्षसि꣣ नृ꣡भि꣢र्धौ꣣तो꣡ वि꣢चक्ष꣣णः꣢ ॥६७६॥
स्वर सहित पद पाठदु꣣हा꣢नः । ऊ꣡धः꣢꣯ । दि꣣व्य꣢म् । म꣡धु꣢꣯ । प्रि꣣य꣢म् । प्र꣣त्न꣢म् । स꣣ध꣡स्थ꣢म् । स꣣ध꣢ । स्थ꣡म् । आ꣢ । अ꣣सदत् । आ꣣पृ꣡च्छ्य꣢म् । आ꣣ । पृ꣡च्छ्य꣢꣯म् । ध꣣रु꣢ण꣣म् । वा꣣जी꣢ । अ꣣र्षसि । नृ꣡भिः꣢꣯ । धौ꣡तः꣢ । वि꣣चक्षणः꣢ । वि꣣ । चक्षणः꣢ ॥६७६॥
स्वर रहित मन्त्र
दुहान ऊधर्दिव्यं मधु प्रियं प्रत्नꣳ सधस्थमासदत् । आपृच्छ्यं धरुणं वाज्यर्षसि नृभिर्धौतो विचक्षणः ॥६७६॥
स्वर रहित पद पाठ
दुहानः । ऊधः । दिव्यम् । मधु । प्रियम् । प्रत्नम् । सधस्थम् । सध । स्थम् । आ । असदत् । आपृच्छ्यम् । आ । पृच्छ्यम् । धरुणम् । वाजी । अर्षसि । नृभिः । धौतः । विचक्षणः । वि । चक्षणः ॥६७६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 676
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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विषय - अगले मन्त्र में गुरु के अन्तेवासी शिष्य का वर्णन है।
पदार्थ -
यह शिष्य (ऊधः) विशाल ऊधवाली गुरुरूप गाय से (दिव्यम्) अलौकिक, (प्रियम्) प्रिय मधु ब्रह्मविद्यारूप मधु को (दुहानः) दुहता हुआ (प्रत्नम्) प्राचीन, (सधस्थम्) गुरु और छात्र जहाँ एकसाथ रहते हैं, उस गुरुकुल में (आसदत्) निवास करता है। आगे प्रत्यक्ष पद्धति से कहते हैं—हे शिष्य ! (नृभिः) नेता गुरुओं से (धौतः) पवित्र किया हुआ, (विचक्षणः) पण्डित, और (वाजी) आत्मबल से बली बना हुआ तू (आपृच्छ्यम्) सबसे प्रश्न करने योग्य, (धरुणम्) सब जगत् के आधारस्तम्भ परमेश्वर को (अर्षसि) पा लेता है अर्थात् आवागमन के चक्र से छुटकर दुःखों से सदा के लिए मुक्ति प्राप्त कर लेता है ॥२॥
भावार्थ - योग्य गुरु को पाकर ही मनुष्य ब्रह्म का साक्षात्कार और मोक्ष प्राप्त कर सकता है ॥२॥
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