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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 702
ऋषिः - कविर्भार्गवः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - जगती
स्वरः - निषादः
काण्ड नाम -
5
अ꣡व꣢ द्युता꣣नः꣢ क꣣ल꣡शा꣢ꣳ अचिक्रद꣣न्नृ꣡भि꣢र्येमा꣣णः꣢꣫ कोश꣣ आ꣡ हि꣢र꣣ण्य꣡ये꣢ । अ꣣भी꣢ ऋ꣣त꣡स्य꣢ दो꣣ह꣡ना꣢ अनूष꣣ता꣡धि꣢ त्रिपृ꣣ष्ठ꣢ उ꣣ष꣢सो꣣ वि꣡ रा꣢जसि ॥७०२॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡व꣢꣯ । द्यु꣣तानः꣢ । क꣣ल꣡शा꣢न् । अ꣣चिक्रदत् । नृ꣡भिः꣢꣯ । ये꣣मानः꣢ । को꣡शे꣢꣯ । आ । हि꣣रण्य꣡ये꣢ । अ꣡भि꣢ । ऋ꣣त꣡स्य꣢ । दो꣣ह꣡नाः꣢ । अ꣣नूषत । अ꣡धि꣢꣯ । त्रि꣣पृष्ठः꣢ । त्रि꣣ । पृष्ठः꣢ । उ꣣ष꣡सः꣢ । वि । रा꣣जसि ॥७०२॥
स्वर रहित मन्त्र
अव द्युतानः कलशाꣳ अचिक्रदन्नृभिर्येमाणः कोश आ हिरण्यये । अभी ऋतस्य दोहना अनूषताधि त्रिपृष्ठ उषसो वि राजसि ॥७०२॥
स्वर रहित पद पाठ
अव । द्युतानः । कलशान् । अचिक्रदत् । नृभिः । येमानः । कोशे । आ । हिरण्यये । अभि । ऋतस्य । दोहनाः । अनूषत । अधि । त्रिपृष्ठः । त्रि । पृष्ठः । उषसः । वि । राजसि ॥७०२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 702
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 5; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 5; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
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विषय - अगले मन्त्र में ब्रह्मानन्द-रस का वर्णन है।
पदार्थ -
(नृभिः) उपासक जनों द्वारा (हिरण्यये कोशे) ज्योतिर्मय विज्ञानमय कोश में (येमाणः) नियन्त्रित किया जाता हुआ, (द्युतानः) प्रकाशमान ब्रह्मानन्दरूप सोमरस (कलशान्) आत्मारूप द्रोणकलशों में (अव अचिक्रदत्) कल-कल ध्वनि-सी करता हुआ प्रवेश करता है। (ऋतस्य) सच्चे ब्रह्मानन्द-रस को (दोहनाः) दुहनेवाले उपासक लोग उस रस की (अभि अनूषत) स्तुति करते हैं। (त्रिपृष्ठः) ज्ञानकर्मोपासनारूप तीन आधारोंवाला तू, हे ब्रह्मानन्द-रस ! (उषसः अधि) उषाकाल में सन्ध्योपासना में (विराजसि) विशेष रूप से प्रकाशित होता है ॥३॥
भावार्थ - योग द्वारा ब्रह्मानन्द-रस से अपने आत्मा को सींचकर योगी जन कृतार्थ होवें ॥३॥ इस खण्ड में आचार्य, परमात्मा, जीवात्मा, ज्ञानकर्मोपासना, वेद एवं ब्रह्मानन्द का विषय वर्णित होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ प्रथम अध्याय में पञ्चम खण्ड समाप्त ॥
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