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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 705
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
ए꣢ह्यू꣣ षु꣡ ब्रवा꣢꣯णि꣣ ते꣡ऽग्न꣢ इ꣣त्थे꣡त꣢रा꣣ गि꣡रः꣢ । ए꣣भि꣡र्व꣢र्धास꣣ इ꣡न्दु꣢भिः ॥७०५॥
स्वर सहित पद पाठआ꣢ । इ꣣हि । ऊ । सु꣢ । ब्र꣡वा꣢꣯णि । ते꣣ । अ꣡ग्ने꣢꣯ । इ꣣त्था꣢ । इ꣡त꣢꣯राः । गि꣡रः꣢꣯ । ए꣣भिः꣢ । व꣣र्द्धासे । इ꣡न्दु꣢꣯भिः ॥७०५॥
स्वर रहित मन्त्र
एह्यू षु ब्रवाणि तेऽग्न इत्थेतरा गिरः । एभिर्वर्धास इन्दुभिः ॥७०५॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । इहि । ऊ । सु । ब्रवाणि । ते । अग्ने । इत्था । इतराः । गिरः । एभिः । वर्द्धासे । इन्दुभिः ॥७०५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 705
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 21; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 6; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 21; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 6; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में क्रमाङ्क ७ पर परमेश्वरोपासना के विषय में की गयी थी। यहाँ गुरु शिष्य को सम्बोधन कर रहा है।
पदार्थ -
हे (अग्ने) तपस्वी विद्यार्थी ! (एहि उ) आ, मैं (ते) तेरे लिये (सु) भली-भाँति (इत्था) सच्चे रूप में (इतराः) सामान्य वाणियों से विलक्षण प्रकार की (गिरः) शास्त्रवाणियों का (ब्रवाणि) उपदेश करूँ। तू (एभिः) इन (इन्दुभिः) विद्या-रसों से (वर्धासे) वृद्धि को प्राप्त कर ॥१॥
भावार्थ - गुरुओं को चाहिये कि प्रेम से बुलाकर शिष्यों को मनोयोग से पढ़ाएँ ॥१॥
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