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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 707
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
न꣡ हि ते꣢꣯ पू꣣र्त꣡म꣢क्षि꣣प꣡द्भुव꣢꣯न्नेमानां पते । अ꣢था꣣ दु꣡वो꣢ वनवसे ॥७०७॥
स्वर सहित पद पाठन꣢ । हि । ते꣣ । पूर्त꣢म् । अ꣣क्षिप꣢त् । अ꣣क्षि । प꣢त् । भु꣡व꣢꣯त् । ने꣣मानाम् । पते । अ꣡थ꣢꣯ । दु꣡वः꣢꣯ । व꣣नवसे ॥७०७॥
स्वर रहित मन्त्र
न हि ते पूर्तमक्षिपद्भुवन्नेमानां पते । अथा दुवो वनवसे ॥७०७॥
स्वर रहित पद पाठ
न । हि । ते । पूर्तम् । अक्षिपत् । अक्षि । पत् । भुवत् । नेमानाम् । पते । अथ । दुवः । वनवसे ॥७०७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 707
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 21; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 6; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 21; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 6; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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विषय - अगले मन्त्र में शिष्य गुरु को कह रहे हैं।
पदार्थ -
हे (नेमानां पते) हम अपूर्णों के पालनकर्ता आचार्यवर ! (ते) आपका (पूर्तम्) पालनपूरण (अक्षिपत्) आँख आदि इन्द्रियों को पतन की ओर ले जानेवाला (नहि) न (भुवत्) होवे। (अथ) और, आप हमारे (दुवः) सत्कार को (वनवसे) स्वीकार कीजिए ॥३॥
भावार्थ - गुरुजन शिष्यों को भली-भाँति पढ़ाकर सदाचार में प्रवृत्त करें और शिष्य उनका श्रद्धा के साथ सत्कार करें ॥३॥
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