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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 71
ऋषिः - त्रिशिरास्त्वाष्ट्रः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
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प्र꣢ के꣣तु꣡ना꣢ बृह꣣ता꣡ या꣢त्य꣣ग्नि꣡रा रोद꣢꣯सी वृष꣣भो꣡ रो꣢रवीति । दि꣣व꣢श्चि꣣द꣡न्ता꣢दुप꣣मा꣡मुदा꣢꣯नड꣣पा꣢मु꣣पस्थे꣢ महि꣣षो꣡ व꣢वर्ध ॥७१॥

स्वर सहित पद पाठ

प्र꣢ । के꣣तु꣡ना꣢ । बृ꣣हता꣢ । या꣣ति । अग्निः꣢ । आ । रो꣡द꣢꣯सी꣣इ꣡ति꣢ । वृ꣣षभः꣢ । रो꣣रवीति । दिवः꣢ । चि꣣त् । अ꣡न्ता꣢꣯त् । उ꣣पमा꣢म् । उ꣣प । मा꣢म् । उत् । आ꣣नट् । अपा꣢म् । उ꣣प꣡स्थे꣢ । उ꣣प꣡ । स्थे꣣ । महिषः꣢ । व꣣वर्ध ॥७१॥


स्वर रहित मन्त्र

प्र केतुना बृहता यात्यग्निरा रोदसी वृषभो रोरवीति । दिवश्चिदन्तादुपमामुदानडपामुपस्थे महिषो ववर्ध ॥७१॥


स्वर रहित पद पाठ

प्र । केतुना । बृहता । याति । अग्निः । आ । रोदसीइति । वृषभः । रोरवीति । दिवः । चित् । अन्तात् । उपमाम् । उप । माम् । उत् । आनट् । अपाम् । उपस्थे । उप । स्थे । महिषः । ववर्ध ॥७१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 71
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 7;
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पदार्थ -
(अग्निः) ज्योतिर्मय जगन्नायक परमेश्वर (बृहता) विशाल (केतुना) ज्ञानराशि के साथ (प्रयाति) उपासक को प्राप्त होता है, (रोदसी) आकाश और भूमि में (आ) व्याप्त होता है, (वृषभः) सुख आदि को बरसानेवाला वह (रोरवीति) सबको बार-बार उपदेश करता है। वह (दिवः) द्युलोक के (चित्) भी (अन्तात्) प्रान्त से (उपमाम्) सूर्य के समान प्रकाशक, नक्षत्रों के समान कान्तिमान्, ध्रुव तारे के समान अचल इत्यादि रूप से उपमा को (उदानट्) प्राप्त करता है। (महिषः) महान् वह (अपाम्) जलों के (उपस्थे) स्थिति-स्थान अन्तरिक्ष में भी (ववर्ध) महिमा को प्राप्त किये हुए है ॥९॥ इस मन्त्र में याति, रोरवीति, उदानट्, ववर्ध इन अनेक क्रियाओं का एक कर्ता-कारक से सम्बन्ध होने के कारण दीपक अलङ्कार है ॥९॥

भावार्थ - एक ही अग्नि जैसे द्युलोक में सूर्य-रूप में, अन्तरिक्ष में विद्युत्-रूप में और पृथिवी पर अग्नि के रूप में भासित होता है, वैसे ही एक ही परमात्मा सूर्य, तारा-मण्डल, बिजली, बादल, अग्नि आदि सब स्थानों में प्रकाशित होता है ॥९॥

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