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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 726
ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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शा꣡चि꣢गो꣣ शा꣡चि꣢पूजना꣣य꣡ꣳ रणा꣢꣯य ते सु꣣तः꣢ । आ꣡ख꣢ण्डल꣣ प्र꣡ हू꣢यसे ॥७२६॥

स्वर सहित पद पाठ

शा꣡चि꣢꣯गो । शा꣡चि꣢꣯ । गो꣣ । शा꣡चि꣢꣯पूजन । शा꣡चि꣢꣯ । पू꣣जन । अय꣢म् । र꣡णा꣢꣯य । ते꣣ । सुतः꣢ । आ꣡ख꣢꣯ण्डल । प्र । हू꣡यसे ॥७२६॥


स्वर रहित मन्त्र

शाचिगो शाचिपूजनायꣳ रणाय ते सुतः । आखण्डल प्र हूयसे ॥७२६॥


स्वर रहित पद पाठ

शाचिगो । शाचि । गो । शाचिपूजन । शाचि । पूजन । अयम् । रणाय । ते । सुतः । आखण्डल । प्र । हूयसे ॥७२६॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 726
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
हे (शाचिगो) जिसकी वाणियाँ ज्ञान और कर्म का उपदेश करनेवाली हैं, ऐसे जगदीश्वर ! हे (शाचिपूजन) ज्ञानी पुरुषार्थियों से पूजे जानेवाले परमात्मन् ! (अयम्) यह भक्ति-रस (ते) आपके (रणाय) रमने के लिए (सुतः) हमारे द्वारा उत्पन्न किया गया है। हे (आखण्डल) दुःख, दुर्गुण, दुर्व्यसन आदि को खण्ड-खण्ड करनेवाले देव ! आप उस भक्ति-रस का पान करने के लिए (प्रहूयसे) हमारे द्वारा चाव से बुलाए जा रहे हो ॥२॥

भावार्थ - ज्ञान और पुरुषार्थपूर्वक भक्तिभाव से आराधना किया हुआ परमेश्वर उपासकों के दुःख, दारिद्र्य आदि को खण्डित करके उन्हें ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करके सुखी करता है ॥२॥

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