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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 765
ऋषिः - त्रित आप्त्यः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
अ꣣भि꣡ द्रोणा꣢꣯नि ब꣣भ्र꣡वः꣢ शु꣣क्रा꣢ ऋ꣣त꣢स्य꣣ धा꣡र꣢या । वा꣢जं꣣ गो꣡म꣢न्तमक्षरन् ॥७६५॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣भि꣢ । द्रो꣡णा꣢꣯नि । ब꣣भ्र꣡वः꣢ । शु꣣क्रा꣢ । ऋ꣣त꣡स्य꣢ । धा꣡र꣢꣯या । वा꣡ज꣢꣯म् । गो꣡म꣢꣯न्तम् । अ꣡क्षरन् ॥७६५॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि द्रोणानि बभ्रवः शुक्रा ऋतस्य धारया । वाजं गोमन्तमक्षरन् ॥७६५॥
स्वर रहित पद पाठ
अभि । द्रोणानि । बभ्रवः । शुक्रा । ऋतस्य । धारया । वाजम् । गोमन्तम् । अक्षरन् ॥७६५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 765
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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विषय - अगले मन्त्र में विद्वान् आचार्य के द्वारा दिये जाते हुए ज्ञानरसों का वर्णन है।
पदार्थ -
आचार्य से दिये जाते हुए (बभ्रवः) धारण-पोषण करनेवाले, (शुक्राः) पवित्र और प्रदीप्त ज्ञानरसरूप सोम (ऋतस्य) सत्य की (धारया) धारा के साथ (द्रोणानि) शिष्यों के हृदय-रूप द्रोण-कलशों को (अभि) लक्ष्य करके तीव्रता से बहते हैं और (गोमन्तम्) प्रकाशमय (वाजम्) आत्मबल को (अक्षरन्) स्रवित करते हैं ॥२॥
भावार्थ - सुयोग्य आचार्य को पाकर विद्यार्थी लोग विद्यावान्, विवेकवान्, सत्यवान्, ज्योतिष्मान्,पवित्रहृदय तथा आत्मबलयुक्त होवें ॥२॥
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