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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 784
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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वृ꣢षा꣣ ह्य꣡सि꣢ भा꣣नु꣡ना꣢ द्यु꣣म꣡न्तं꣢ त्वा हवामहे । प꣡व꣢मान स्व꣣र्दृ꣡श꣢म् ॥७८४॥

स्वर सहित पद पाठ

वृ꣡षा꣢꣯ । हि । अ꣡सि꣢꣯ । भा꣣नु꣡ना꣢ । द्यु꣣म꣡न्त꣢म् । त्वा꣣ । हवामहे । प꣡वमा꣢꣯न । स्व꣣र्दृ꣡श꣢म् । स्वः꣣ । दृ꣡श꣢꣯म् ॥७८४॥


स्वर रहित मन्त्र

वृषा ह्यसि भानुना द्युमन्तं त्वा हवामहे । पवमान स्वर्दृशम् ॥७८४॥


स्वर रहित पद पाठ

वृषा । हि । असि । भानुना । द्युमन्तम् । त्वा । हवामहे । पवमान । स्वर्दृशम् । स्वः । दृशम् ॥७८४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 784
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
हे (पवमान) पवित्रता देनेवाले जगदीश्वर और राजन् ! आप (वृषा) हि) सचमुच सद्गुण, विद्या, सुराज्य, धन आदि की वर्षा करनेवाले (असि) हो। (भानुना) तेज से (द्युमन्तम्) देदीप्यमान, (स्वर्दृशम्) मोक्ष के आनन्द वा लौकिक सुख का दर्शन करानेवाले (त्वा) आपको, हम (हवामहे) पुकारते हैं ॥१॥

भावार्थ - जैसे उपासना किया हुआ परमेश्वर हृदय को पवित्र करके उसमें दिव्य ऐश्वर्यों को बरसाता है और मोक्ष का आनन्द देता है, वैसे ही राज्य में राजा राष्ट्रवासियों के भ्रष्टाचार को दूर करके, पवित्र आचरण का प्रचार करके, विविध ऐश्वर्यों की वर्षा करके प्रजाओं को सुख प्रदान करे ॥१॥

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