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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 800
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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इ꣡न्द्रे꣢ अ꣣ग्ना꣡ नमो꣢꣯ बृ꣣ह꣡त्सु꣢वृ꣣क्ति꣡मेर꣢꣯यामहे । धि꣣या꣡ धेना꣢꣯ अव꣣स्य꣡वः꣢ ॥८००॥

स्वर सहित पद पाठ

इ꣡न्द्रे꣢꣯ । अ꣣ग्ना꣢ । न꣡मः꣢꣯ । बृ꣣ह꣢त् । सु꣣वृक्ति꣢म् । सु꣣ । वृक्ति꣢म् । आ । ई꣣रयामहे । धिया꣢ । धे꣡नाः꣣ । अ꣣वस्य꣡वः꣢ ॥८००॥


स्वर रहित मन्त्र

इन्द्रे अग्ना नमो बृहत्सुवृक्तिमेरयामहे । धिया धेना अवस्यवः ॥८००॥


स्वर रहित पद पाठ

इन्द्रे । अग्ना । नमः । बृहत् । सुवृक्तिम् । सु । वृक्तिम् । आ । ईरयामहे । धिया । धेनाः । अवस्यवः ॥८००॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 800
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 2; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(अवस्यवः) रक्षा के इच्छुक, हम लोग (इन्द्रे)जीवात्मा को लक्ष्य करके (बृहत्) महान् (नमः) नमस्कार को, (सुवृक्तिम्) निर्दोष क्रिया को और (धिया) ध्यान तथा बुद्धि के साथ (धेनाः) स्तुतिरूप वाणियों को (आ ईरयामहे) प्रेरित करते हैं ॥१॥

भावार्थ - परमात्मा की उपासना के लिए और जीवात्मा को उद्बोधन देने के लिए नमस्कार, गुणवर्णनरूप स्तुति और तदनुरूप क्रिया निरन्तर अपेक्षित होती है। पुरुषार्थ के बिना केवल नमस्कार से या स्तुति से कुछ भी नहीं सिद्ध होता ॥१॥

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