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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 900
ऋषिः - बृहन्मतिराङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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अ꣣य꣢꣫ꣳ स यो दि꣣व꣡स्परि꣢꣯ रघु꣣या꣡मा प꣣वि꣢त्र꣣ आ꣢ । सि꣡न्धो꣢रू꣣र्मा꣡ व्यक्ष꣢꣯रत् ॥९००॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣣य꣢म् । सः । यः । दि꣣वः꣢ । प꣡रि꣢꣯ । र꣡घुया꣡मा꣢ । र꣣घु । या꣡मा꣢꣯ । पवि꣡त्रे꣢ । आ । सि꣡न्धोः꣢꣯ । ऊ꣣र्मा꣢ । व्य꣡क्ष꣢꣯रत् । वि꣣ । अ꣡क्ष꣢꣯रत् ॥९००॥


स्वर रहित मन्त्र

अयꣳ स यो दिवस्परि रघुयामा पवित्र आ । सिन्धोरूर्मा व्यक्षरत् ॥९००॥


स्वर रहित पद पाठ

अयम् । सः । यः । दिवः । परि । रघुयामा । रघु । यामा । पवित्रे । आ । सिन्धोः । ऊर्मा । व्यक्षरत् । वि । अक्षरत् ॥९००॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 900
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(अयम्) यह हमसे अनुभव किया जाता हुआ (सः) वह प्रसिद्ध ब्रह्मानन्दरस है, (यः) जो (रघुयामा) शीघ्र गतिवाला होता हुआ (दिवः परि) आनन्दमय परमेश्वर के पास से (पवित्रे आ) पवित्र हृदय में आकर (सिन्धोः ऊर्मौ) आत्मारूप समुद्र की तरङ्ग में (व्यक्षरत्) क्षरित हो रहा है ॥३॥

भावार्थ - जैसे सोमौषधि का रस दशापवित्र नामक छन्नी से क्षरित होकर द्रोणकलश में गिरता है, अथवा जैसे चाँदनी का रस पवित्र अन्तरिक्ष से क्षरित होकर समुद्र में गिरता है, वैसे ही परमात्मा के पास से आया हुआ आनन्दरस पवित्र हृदय से क्षरित होकर अन्तरात्मा में आता है ॥३॥

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