Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 903
ऋषिः - बृहन्मतिराङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
6

स꣣मीचीना꣡ अ꣢नूषत꣣ ह꣡रि꣢ꣳ हिन्व꣣न्त्य꣡द्रि꣢भिः । इ꣢न्दु꣣मि꣡न्द्रा꣢य पी꣣त꣡ये꣢ ॥९०३॥

स्वर सहित पद पाठ

समी꣣चीनाः꣢ । स꣣म् । ईचीनाः꣢ । अ꣣नूषत । ह꣡रि꣢꣯म् । हि꣣न्वन्ति । अ꣡द्रि꣢꣯भिः । अ । द्रि꣣भिः । इ꣡न्दु꣢꣯म् । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । पी꣣त꣡ये꣢ ॥९०३॥


स्वर रहित मन्त्र

समीचीना अनूषत हरिꣳ हिन्वन्त्यद्रिभिः । इन्दुमिन्द्राय पीतये ॥९०३॥


स्वर रहित पद पाठ

समीचीनाः । सम् । ईचीनाः । अनूषत । हरिम् । हिन्वन्ति । अद्रिभिः । अ । द्रिभिः । इन्दुम् । इन्द्राय । पीतये ॥९०३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 903
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
Acknowledgment

पदार्थ -
जो उपासक लोग (समीचीनाः) परस्पर मिलकर (अनूषत) पवित्रकर्ता परमात्मा की स्तुति करते हैं और (हरिम्) अज्ञान, दुःख आदि को हरनेवाले उसे (अद्रिभिः) अखण्डित ध्यानों से (हिन्वन्ति) अपने अन्दर बढ़ाते हैं, वे (इन्दुम्) सराबोर करनेवाले ब्रह्मानन्द-रस को (इन्द्राय) अपने जीवात्मा को (पातवे) पिलाने में समर्थ होते हैं ॥६॥

भावार्थ - मनुष्यों को योग्य है कि ध्यानयोग द्वारा परमात्मा की आराधना करके ब्रह्मानन्द को प्राप्त करें ॥६॥

इस भाष्य को एडिट करें
Top