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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 922
ऋषिः - सप्तर्षयः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - प्रगाथः(विषमा बृहती, समा सतोबृहती) स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम -
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त꣢वा꣣ह꣡ꣳ सो꣢म रारण स꣣ख्य꣡ इ꣢न्दो दि꣣वे꣡दि꣢वे । पु꣣रूणि꣢ बभ्रो꣣ नि꣡ च꣢रन्ति꣣ मा꣡मव꣢꣯ प꣣रिधी꣢꣫ꣳरति꣣ ता꣡ꣳइ꣢हि ॥९२२॥

स्वर सहित पद पाठ

त꣡व꣢꣯ । अ꣡ह꣢म् । सो꣣म । रारण । सख्ये꣢ । स꣣ । ख्ये꣢ । इ꣣न्दो । दिवे꣡दि꣢वे । दि꣣वे꣢ । दि꣣वे । पुरू꣡णि꣢ । ब꣣भ्रो । नि꣢ । च꣣रन्ति । मा꣢म् । अ꣡व꣢꣯ । प꣣रिधी꣢न् । प꣣रि । धी꣢न् । अ꣡ति꣢꣯ । तान् । इ꣣हि ॥९२२॥


स्वर रहित मन्त्र

तवाहꣳ सोम रारण सख्य इन्दो दिवेदिवे । पुरूणि बभ्रो नि चरन्ति मामव परिधीꣳरति ताꣳइहि ॥९२२॥


स्वर रहित पद पाठ

तव । अहम् । सोम । रारण । सख्ये । स । ख्ये । इन्दो । दिवेदिवे । दिवे । दिवे । पुरूणि । बभ्रो । नि । चरन्ति । माम् । अव । परिधीन् । परि । धीन् । अति । तान् । इहि ॥९२२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 922
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 4; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
हे (इन्दो) विद्यारस से सराबोर करनेवाले, तेजस्वी (सोम) विद्यारस के भण्डार आचार्य ! (अहम्) मैं शिष्य (तव सख्ये) आपकी मैत्री में (दिवे दिवे) प्रतिदिन (रारण) वेदादि शास्त्रों का उच्चारण करता हूँ। हे (बभ्रो) सब शिष्यों का भरण-पोषण करनेवाले आचार्य! (पुरूणि) बहुत से दोष (माम्)मुझ शिष्य को (नि अव चरन्ति) कष्ट दे रहे हैं, (परिधीन् तान्) चारों ओर से घेरनेवाले उन दोषों को (अति इहि) दूर कर दीजिए ॥१॥

भावार्थ - गुरुओं का यह कतर्व्य है कि वे शिष्यों में उत्पन्न हुए दोषों को दूर करके उन्हें निर्मल चरित्रवाला और विद्वान् बनायें ॥१॥

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