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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 99
ऋषिः - गोतमो राहूगणः
देवता - अग्निः
छन्दः - उष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
9
अ꣢ग्ने꣣ वा꣡ज꣢स्य꣣ गो꣡म꣢त꣣ ई꣡शा꣢नः सहसो यहो । अ꣣स्मे꣡ दे꣢हि जातवेदो꣣ म꣢हि꣣ श्र꣡वः꣢ ॥९९॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡ग्ने꣢꣯ । वा꣡ज꣢꣯स्य । गो꣡म꣢꣯तः । ई꣡शा꣢꣯नः । स꣣हसः । यहो । अस्मे꣡इ꣢ति । दे꣣हि । जातवेदः । जात । वेदः । म꣡हि꣢꣯ । श्र꣡वः꣢꣯ ॥९९॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्ने वाजस्य गोमत ईशानः सहसो यहो । अस्मे देहि जातवेदो महि श्रवः ॥९९॥
स्वर रहित पद पाठ
अग्ने । वाजस्य । गोमतः । ईशानः । सहसः । यहो । अस्मेइति । देहि । जातवेदः । जात । वेदः । महि । श्रवः ॥९९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 99
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 11;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 11;
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विषय - अगले मन्त्र में परमात्मा विद्वान् और राजा से प्रार्थना की गयी है।
पदार्थ -
हे (सहसः यहो) बल के पुतले, बलियों में बली, (जातवेदः) सर्वज्ञ, सर्वव्यापक, सब धन और ज्ञान के उत्पादक (अग्ने) ज्योतिर्मय परमात्मन् ! अथवा, हे (सहसः यहो) शत्रुपराजयशील, बलवान् पिता के पुत्र, (जातवेदः) शास्त्रों के ज्ञाता (अग्ने) विद्वन् वा राजन् ! (गोमतः) प्रशस्त गाय, पृथिवी, वेदवाणी आदि से युक्त (वाजस्य) ऐश्वर्य के (ईशानः) अधीश्वर आप (अस्मे) हमें (महि) महान् (श्रवः) कीर्ति, प्रशंसा और धन-धान्य आदि (देहि) प्रदान कीजिए ॥३॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है ॥३॥
भावार्थ - मनुष्यों को चाहिए कि जगदीश्वर की उपासना से पुरुषार्थी होकर अपने पुरुषार्थ से और सब शास्त्र पढ़े हुए विद्वानों तथा राजनीतिज्ञ राजा की सहायता से समस्त धन, धान्य, विद्या, साम्राज्य आदि ऐश्वर्य और अत्यन्त विस्तीर्ण यश को प्राप्त करें ॥३॥
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