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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 102
ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः देवता - अदितिः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
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उ꣣त꣢꣫ स्या नो꣣ दि꣡वा꣢ म꣣ति꣡रदि꣢꣯तिरू꣣त्या꣡ग꣢मत् । सा꣡ शन्ता꣢꣯ता꣣ म꣡य꣢स्कर꣣द꣢प꣣ स्रि꣣धः꣢ ॥१०२॥

स्वर सहित पद पाठ

उ꣣त꣢ । स्या । नः꣣ । दि꣡वा꣢꣯ । म꣣तिः꣢ । अ꣡दि꣢꣯तिः । अ । दि꣣तिः । ऊत्या꣢ । आ । ग꣢मत् । सा꣢ । श꣡न्ता꣢꣯ता । शम् । ता꣣ता । म꣡यः꣢꣯ । क꣣रत् । अ꣡प꣢꣯ । स्रि꣡धः꣢꣯ ॥१०२॥


स्वर रहित मन्त्र

उत स्या नो दिवा मतिरदितिरूत्यागमत् । सा शन्ताता मयस्करदप स्रिधः ॥१०२॥


स्वर रहित पद पाठ

उत । स्या । नः । दिवा । मतिः । अदितिः । अ । दितिः । ऊत्या । आ । गमत् । सा । शन्ताता । शम् । ताता । मयः । करत् । अप । स्रिधः ॥१०२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 102
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 11;
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पदार्थ -
(स्या मतिः) वह मेधा (अदितिः) ‘अदितेः’ ‘विभक्तिव्यत्ययः’ अखण्ड मातृरूप—हमारे लिये सुख साधनों के निर्माण करने वाले परमात्मा के पास से (नः-ऊत्या दिवा-आगमत्) हमारे रक्षा के निमित्तभूत दिनक्रम से—प्रतिदिन—निरन्तर बढ़ बढ़कर हमें समन्तरूप से प्राप्त हुआ करे—आती रहें (सा शन्ताता) वह शान्ति करे “शिवशमरिष्टस्य करे” [अष्टा॰ ४.४.१४३] (मयस्करत्) सुख करें—सुख पहुँचाती रहे “मयः सुखनाम” [नि॰ ३.६] (स्रिधः-अप) कामवासना आदि जीवन रसशोषक दोषों को दूर करती रहे।

भावार्थ - अखण्ड परमात्मशक्ति की आराधना से वह मेधा—बुद्धि निरन्तर आती है दिनोंदिन बढ़ बढ़कर रहती है, जो हमारी रक्षा सदा करती रहती है, साथ में शान्ति और सुखों का विस्तार करती है, समस्त पोषक जीवनरस बढ़ाती है, कामवासना आदि दोषों को दूर किया करती है, अतः परमात्मा की सदा आराधना करनी चाहिये॥६॥

विशेष - ऋषिः—इरिम्बिठः (अन्तरिक्ष में या शब्द में गति जिसकी है ऐसा विद्वान् “बिठमन्तरिक्षम्” [निरु॰ ६.३०] “बिट् शब्दे” [भ्वा॰] “पृषोदरादिष्ठ-सिद्धिः”)॥ देवताः—अदितिः (अदितिरूप से अग्नि परमात्मा)॥<br>

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