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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1063
ऋषिः - जमदग्निर्भार्गवः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
उ꣣त꣢ नो꣣ गो꣡म꣢ती꣣रि꣢षो꣣ वि꣡श्वा꣢ अर्ष परि꣣ष्टु꣡भः꣢ । गृ꣣णानो꣢ ज꣣म꣡द꣢ग्निना ॥१०६३॥
स्वर सहित पद पाठउ꣣त꣢ । नः꣣ । गो꣡म꣢꣯तीः । इ꣡षः꣢꣯ । वि꣡श्वाः꣢꣯ । अ꣣र्ष । परिष्टु꣡भः꣢ । प꣣रि । स्तु꣡भः꣢꣯ । गृ꣣णानः꣢ । ज꣣म꣡द꣢ग्निना । ज꣡म꣢त् । अ꣣ग्निना ॥१०६३॥
स्वर रहित मन्त्र
उत नो गोमतीरिषो विश्वा अर्ष परिष्टुभः । गृणानो जमदग्निना ॥१०६३॥
स्वर रहित पद पाठ
उत । नः । गोमतीः । इषः । विश्वाः । अर्ष । परिष्टुभः । परि । स्तुभः । गृणानः । जमदग्निना । जमत् । अग्निना ॥१०६३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1063
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(उत) अपि च—तथा (नः) हे सोम—शान्तस्वरूप परमात्मन् तू मेरे लिए (ष्टुभः-गोमतीः-विश्वाः-इषः) स्तुत्य—प्रशंसनीय प्रार्थना वाली सारी कामनाएँ (जमदग्निना गृणानः) मुझ प्रज्वलित ज्ञानाग्नि वाले उपासक के द्वारा स्तुत किया जाता हुआ—स्तुति को प्राप्त हुआ (परि-अर्ष) परिपूर्ण कर॥३॥
विशेष - <br>
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