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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1132
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
प꣡व꣢मानो अ꣣भि꣢꣫ स्पृधो꣣ वि꣢शो꣣ रा꣡जे꣢व सीदति । य꣡दी꣢मृ꣣ण्व꣡न्ति꣢ वे꣣ध꣡सः꣢ ॥११३२॥
स्वर सहित पद पाठप꣡व꣢꣯मानः । अ꣣भि꣢ । स्पृ꣡धः꣢꣯ । वि꣡शः꣢꣯ । रा꣡जा꣢꣯ । इ꣣व । सीदति । य꣢त् । ई꣣म् । ऋण्व꣡न्ति꣢ । वे꣣ध꣡सः꣢ ॥११३२॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमानो अभि स्पृधो विशो राजेव सीदति । यदीमृण्वन्ति वेधसः ॥११३२॥
स्वर रहित पद पाठ
पवमानः । अभि । स्पृधः । विशः । राजा । इव । सीदति । यत् । ईम् । ऋण्वन्ति । वेधसः ॥११३२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1132
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 5
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 5
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
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पदार्थ -
(वेधसः-यत्-ईम्-ऋण्वन्ति) उपासक मेधावी आत्माएँ जब इस सोम—शान्तस्वरूप परमात्मा को प्राप्त करते हैं*38 कर लेते हैं तो (पवमानः स्पृधः-अभि सीदति) आनन्दधारा में आता हुआ परमात्मा उनके साथ संघर्ष करनेवाले पाप काम आदि दोषों को दबा देता है (राजा-इव विशः) जैसे राजा प्रजा पर अधिकार करता है उनके उपद्रवों को दबा देता है॥५॥
टिप्पणी -
[*38. “ऋण्वन्ति गतिकर्मा” [निघं॰ २.१४]।]
विशेष - <br>
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