Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 115
ऋषिः - शंयुर्बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
4

त꣡द्वो꣢ गाय सु꣣ते꣡ सचा꣢꣯ पुरुहू꣣ता꣢य꣣ स꣡त्व꣢ने । शं꣢꣫ यद्गवे꣣ न꣢ शा꣣कि꣡ने꣢ ॥११५॥

स्वर सहित पद पाठ

त꣢त् । वः꣣ । गाय । सुते꣢ । स꣡चा꣢꣯ । पु꣣रुहूता꣡य꣣ । पु꣣रु । हूता꣡य꣢ । स꣡त्व꣢꣯ने । शम् । यत् । ग꣡वे꣢꣯ । न꣢ । शा꣣कि꣡ने꣢ ॥११५॥


स्वर रहित मन्त्र

तद्वो गाय सुते सचा पुरुहूताय सत्वने । शं यद्गवे न शाकिने ॥११५॥


स्वर रहित पद पाठ

तत् । वः । गाय । सुते । सचा । पुरुहूताय । पुरु । हूताय । सत्वने । शम् । यत् । गवे । न । शाकिने ॥११५॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 115
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 1;
Acknowledgment

पदार्थ -
(वः) तू आत्मशक्ति प्रार्थीजन! “विभक्तिवचनव्यत्ययः” (सुते) ब्रह्मचर्यकाल में ज्ञान निष्पन्न हो जाने पर—स्नातक बनते ही (सचा) जब वधू का साथ हो तब (पुरुहूताय-सत्वने) बहु प्रकार से स्तुति करने योग्य—समस्त ऐश्वर्य के देने वाले—“सन सम्भक्तौ” [भ्वादि॰] (गवे न शाकिने) वृषभसमान शक्त—शक्तिमान् इन्द्र—ऐश्वर्यवान् परमात्मा के लिये “शक्नोतीति शाकी” ‘छान्दसो णिनिः’ (तत्-शं गाय) उस-गार्हस्थ्यभार उठाने, संयम से रहने और ऐश्वर्य पाने के हेतु “तत् हेतौ कारणे सम्बन्धे च” [अव्ययार्थनिबन्धनम्] शं-शान्त सुख पूर्वक गा—स्तुति में ला।

भावार्थ - जैसे विद्यासम्पन्न होकर आचार्य के यहाँ स्नातक बनकर पत्नी का साथ हो तब से उस बहुत स्तुत्य ऐश्वर्यदाता वृषभसमान शक्त परमात्मा के लिये अपने गृहस्थ में संयम से रह सकने, ऐश्वर्य प्राप्त करने, गृहस्थभार उठाने, चलाने के हेतु सुखपूर्वक मधुर गान स्तवन नित्य किया करें अन्यथा गृहस्थ में जीवन का पतन सम्भव है॥१॥

विशेष - ऋषिः—शंयुर्बार्हस्पत्य (विद्यानिष्णात का शिष्य कल्याण का इच्छुक उपासकजन)॥<br>देवता-इन्द्रः (ऐश्वर्यवान् सर्वशक्तिमान् परमात्मा)। छन्दः—गायत्री। स्वरः—षड्जः।

इस भाष्य को एडिट करें
Top