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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1164
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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य꣡ आ꣢र्जी꣣के꣢षु꣣ कृ꣡त्व꣢सु꣣ ये꣡ मध्ये꣢꣯ प꣣꣬स्त्या꣢꣯नाम् । ये꣢ वा꣣ ज꣡ने꣢षु प꣣ञ्च꣡सु꣢ ॥११६४॥

स्वर सहित पद पाठ

ये । आ꣣जीर्के꣡षु꣢ । कृ꣡त्व꣢꣯सु । ये । म꣡ध्ये꣢꣯ । प꣣꣬स्त्या꣢नाम् । ये । वा꣣ । ज꣡ने꣢꣯षु । प꣣ञ्च꣡सु꣢ ॥११६४॥


स्वर रहित मन्त्र

य आर्जीकेषु कृत्वसु ये मध्ये पस्त्यानाम् । ये वा जनेषु पञ्चसु ॥११६४॥


स्वर रहित पद पाठ

ये । आजीर्केषु । कृत्वसु । ये । मध्ये । पस्त्यानाम् । ये । वा । जनेषु । पञ्चसु ॥११६४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1164
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 5; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(ये सोमासः परावति) ‘बहुवचनमादरार्थम्’ जो सोम शान्तस्वरूप परमात्मा दूर*100 परे—मोक्षधाम में (ये अर्वावति) जो समीप—स्वात्मा में*101 (वा) और*102 (अदः शर्यणावति) उस प्रणव धनुष पर*103 (सुन्विरे) साक्षात् होता है (ये-आर्जिकेषु) जो ऋजुगामी परमाणुओं में सूक्ष्म भूतों में (कृत्वसु) कार्यद्रव्यों—पृथिवी आदि स्थूल भूतों में (ये पस्त्यानां मध्ये) जो परमात्मा पशुपक्षी वनस्पतियों के*104 अन्दर (वा) और (ये) जो (पञ्चसु जनेषु) ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, निषाद—वन वासी मनुष्यों में साक्षात् होता है रचनादृष्टि से (ते स्वानाः-इन्दवः-देवासः) वह साक्षात् हुआ रसपूर्ण देव (नः) हमारे लिये (दिवः) अपने अमृत लोक से (वृष्टिं सुवीर्यम्-आ) सुख वृष्टि और शोभन आत्मबल को (परि पवन्ताम्) परिस्रवित कर—वर्षा दे॥१-३॥

विशेष - <br>

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