Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1259
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः स देवरातः कृत्रिमो वैश्वामित्रः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
2

ए꣣ष꣢ दे꣣वो꣡ र꣢थर्यति꣣ प꣡व꣢मानो दिशस्यति । आ꣣वि꣡ष्कृ꣢णोति वग्व꣣नु꣢म् ॥१२५९॥

स्वर सहित पद पाठ

एषः꣢ । दे꣣वः꣢ । र꣣थर्यति । प꣡व꣢꣯मानः । दि꣣शस्यति । आविः꣢ । आ꣣ । विः꣢ । कृ꣣णोति । वग्वनु꣢म् ॥१२५९॥


स्वर रहित मन्त्र

एष देवो रथर्यति पवमानो दिशस्यति । आविष्कृणोति वग्वनुम् ॥१२५९॥


स्वर रहित पद पाठ

एषः । देवः । रथर्यति । पवमानः । दिशस्यति । आविः । आ । विः । कृणोति । वग्वनुम् ॥१२५९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1259
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 4
Acknowledgment

पदार्थ -
(एषः-पवमानः-देवः) यह आनन्दधारा में आता हुआ द्योतमान सोम परमात्मा (रथर्यति) उपासक को रथ-रमणस्थान बनाना चाहता है (दिशस्यति) उसे अपना आनन्दरस देना चाहता है (वग्वनुम्-आविष्कृणोति) मधुरवाणी५ आशीर्वाद-रूप को प्रकट करता है या उपासक की स्तुति वाणी को सफल करता है॥४॥

विशेष - <br>

इस भाष्य को एडिट करें
Top