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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1271
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
ए꣣ष꣡ शृङ्गा꣢꣯णि꣣ दो꣡धु꣢व꣣च्छि꣡शी꣢ते यू꣣थ्यो꣣꣬३꣱वृ꣡षा꣢ । नृ꣣म्णा꣡ दधा꣢꣯न꣣ ओ꣡ज꣢सा ॥१२७१॥
स्वर सहित पद पाठए꣣षः꣢ । शृ꣡ङ्गा꣢꣯णि । दो꣡धु꣢꣯वत् । शि꣡शी꣢꣯ते । यू꣣थ्यः꣢ । वृ꣡षा꣢꣯ । नृ꣣म्णा꣢ । द꣡धा꣢꣯नः । ओ꣡ज꣢꣯सा ॥१२७१॥
स्वर रहित मन्त्र
एष शृङ्गाणि दोधुवच्छिशीते यूथ्यो३वृषा । नृम्णा दधान ओजसा ॥१२७१॥
स्वर रहित पद पाठ
एषः । शृङ्गाणि । दोधुवत् । शिशीते । यूथ्यः । वृषा । नृम्णा । दधानः । ओजसा ॥१२७१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1271
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
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पदार्थ -
(एषः) यह परमात्मा (ओजसा) ज्ञानबल से (शृङ्गाणि दोधुवत्) अपनी आनन्द तरङ्गों को उपासक के अन्दर तरङ्गित कर देता है (यूथ्यः-वृषा शिशीते) जैसे गोसमूह का साण्ड अपने सींगों को तीक्ष्ण करता है उन्हें भूमि में धुनकर३ (नृम्णा दधानः) उपासकों के लिये अध्यात्म अन्न४ अमृतभोग को धारण करने के हेतु॥६॥
विशेष - <br>
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