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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1298
ऋषिः - पवित्र आङ्गिरसो वा वसिष्ठो वा उभौ वा देवता - पवमानाध्येता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
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यः꣡ पा꣢वमा꣣नी꣢र꣣ध्ये꣡त्यृषि꣢꣯भिः꣣ स꣡म्भृ꣢त꣣ꣳ र꣡स꣢म् । स꣢र्व꣣ꣳ स꣢ पू꣣त꣡म꣢श्नाति स्वदि꣣तं꣡ मा꣢त꣣रि꣡श्व꣢ना ॥१२९८॥

स्वर सहित पद पाठ

यः꣢ । पा꣣वमानीः꣢ । अ꣣ध्ये꣡ति꣢ । अ꣣धि । ए꣡ति꣢꣯ । ऋ꣡षि꣢꣯भिः । सं꣡भृ꣢꣯तम् । सम् । भृ꣣तम् । र꣡स꣢꣯म् । स꣡र्व꣢꣯म् । सः । पू꣣त꣢म् । अ꣣श्नाति । स्वदित꣢म् । मा꣣तरि꣡श्व꣢ना ॥१२९८॥


स्वर रहित मन्त्र

यः पावमानीरध्येत्यृषिभिः सम्भृतꣳ रसम् । सर्वꣳ स पूतमश्नाति स्वदितं मातरिश्वना ॥१२९८॥


स्वर रहित पद पाठ

यः । पावमानीः । अध्येति । अधि । एति । ऋषिभिः । संभृतम् । सम् । भृतम् । रसम् । सर्वम् । सः । पूतम् । अश्नाति । स्वदितम् । मातरिश्वना ॥१२९८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1298
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(यः) जो उपासक (पावमानीः-अध्येति) पवमान—आनन्दधारारूप में प्राप्त होने वाले परमात्मा की स्तुतियों को अपने अन्दर अधिगत करता है—आत्मा में समा लेता है (ऋषिभिः सम्भृतं रसम्) जिन स्तुतियों के कवियों—स्तुतिकर्ताजनों ने४ रस—आनन्दरस—पवमान परमात्मरस को अपने अन्दर परम्परा से सम्यक् भरा—धारा५ भरता—धारता है (सः) वह पावमानी स्तुतियों को अपने अन्दर बिठाने वाला (सर्वं पूतम्) समग्र प्राप्त रस को (मातरिश्वना स्वदितम्) माता—अन्तरिक्ष—हृदयाकाश में प्राप्त मन से स्वदित—मनन आदि से अनुभव किए हुए को (अश्नाति) भोगता है॥१॥

विशेष - ऋषिः—पवित्रो वसिष्ठो वोभौ वा (शुद्धान्तःकरण वाला या परमात्मा में अन्तन्त बसने वाला उपासक या दोनों)॥ देवता—पावमान्या अध्ययनप्रशंसा (पावमानी ऋचाओं के अध्ययन की प्रशंसा)॥ छन्दः—अनुष्टुप्॥<br>

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