Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1310
ऋषिः - शतं वैखानसाः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
प꣡व꣢मानस्य꣣ जि꣡घ्न꣢तो꣣ ह꣡रे꣢श्च꣣न्द्रा꣡ अ꣢सृक्षत । जी꣣रा꣡ अ꣢जि꣣र꣡शो꣢चिषः ॥१३१०॥
स्वर सहित पद पाठप꣡व꣢꣯मानस्य । जि꣡घ्न꣢꣯तः । ह꣡रेः꣢꣯ । च꣣न्द्राः꣢ । अ꣣सृक्षत । जीराः꣢ । अ꣣जिर꣡शो꣢चिषः । अ꣣जिर꣢ । शो꣣चिषः ॥१३१०॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमानस्य जिघ्नतो हरेश्चन्द्रा असृक्षत । जीरा अजिरशोचिषः ॥१३१०॥
स्वर रहित पद पाठ
पवमानस्य । जिघ्नतः । हरेः । चन्द्राः । असृक्षत । जीराः । अजिरशोचिषः । अजिर । शोचिषः ॥१३१०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1310
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
पदार्थ -
(जिघ्नतः) दुःख दोषों को नष्ट करते हुए (अजिर-शोचिषः) गमन व्यापनशील तेज वाले (हरेः) सुखाहर्ता (पवमानस्य) धारारूप में प्राप्त होने वाले शान्तस्वरूप परमात्मा की (जीराः-चन्द्राः-असृक्षत) शीघ्रगति वाली१ आह्लादकारी आनन्दधारायें हम उपासकों पर बरस रही हैं॥१॥
विशेष - ऋषिः—वैखानसः (परमात्मा को विशेष खनन करने खोजने में कुशल)॥ देवता—पवमानः सोमः (शान्तस्वरूप परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>
इस भाष्य को एडिट करें