Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1331
ऋषिः - अम्बरीषो वार्षागिर ऋजिश्वा भारद्वाजश्च
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
4
इ꣡न्द्रा꣢य꣣ सोम꣣ पा꣡त꣢वे वृत्र꣣घ्ने꣡ परि꣢꣯ षिच्यसे । न꣡रे꣢ च꣣ द꣡क्षि꣢णावते वी꣣रा꣡य꣢ सदना꣣स꣡दे꣢ ॥१३३१॥
स्वर सहित पद पाठइ꣡न्द्रा꣢꣯य । सो꣣म । पा꣡त꣢꣯वे । वृ꣡त्र꣢꣯घ्ने । वृ꣣त्र । घ्ने꣢ । प꣡रि꣢꣯ । सि꣡च्यसे । न꣡रे꣢꣯ । च꣣ । द꣡क्षि꣢꣯णावते । वी꣣रा꣡य꣢ । स꣣दनास꣡दे꣢ । स꣣दन । स꣡दे꣢꣯ ॥१३३१॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्राय सोम पातवे वृत्रघ्ने परि षिच्यसे । नरे च दक्षिणावते वीराय सदनासदे ॥१३३१॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्राय । सोम । पातवे । वृत्रघ्ने । वृत्र । घ्ने । परि । सिच्यसे । नरे । च । दक्षिणावते । वीराय । सदनासदे । सदन । सदे ॥१३३१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1331
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 18; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 18; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
Acknowledgment
पदार्थ -
(सोम) हे शान्तस्वरूप परमात्मन्! तू (वृत्रघ्ने) पाप नष्ट कर चुका जो उस निष्पाप७ (दक्षिणावते) कामवान्—कामना वाले८ (वीराय) कर्मशील—स्वतन्त्र कर्म करने वाले (सदनासदे) शरीर या हृदय सदन में बैठने वाले (नरे) मुमुक्षु९ (इन्द्राय) आत्मा के (पातवे) पान—धारण करने को (परिषिच्यसे) प्रार्थित किया जाता है॥३॥
विशेष - <br>
इस भाष्य को एडिट करें