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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1347
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - इध्मः समिद्धो वाग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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सु꣡ष꣢मिद्धो न꣣ आ꣡ व꣢ह दे꣣वा꣡ꣳ अ꣢ग्ने ह꣣वि꣡ष्म꣢ते । हो꣡तः꣢ पावक꣣ य꣡क्षि꣢ च ॥१३४७॥

स्वर सहित पद पाठ

सु꣡ष꣢꣯मिद्धः । सु । स꣣मिद्धः । नः । आ꣢ । व꣣ह । देवा꣢न् । अ꣣ग्ने । हवि꣡ष्म꣢ते । होत꣣रि꣡ति꣢ । पा꣣वक । य꣡क्षि꣢꣯ । च꣣ ॥१३४७॥


स्वर रहित मन्त्र

सुषमिद्धो न आ वह देवाꣳ अग्ने हविष्मते । होतः पावक यक्षि च ॥१३४७॥


स्वर रहित पद पाठ

सुषमिद्धः । सु । समिद्धः । नः । आ । वह । देवान् । अग्ने । हविष्मते । होतरिति । पावक । यक्षि । च ॥१३४७॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1347
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(पावक) हे दीप्त पवित्रकर्ता परमात्मन्! तू (हविष्मते) मुझ स्वात्म हवि देने वाले१ समर्पित करने वाले उपासक के लिये (होता) होता—ऋत्विक् बन (च) और (यक्षि) अध्यात्मयज्ञ करा, तथा (अग्ने) हे अग्रणायक परमात्मन्! तू (सु समिद्धः) सम्यक् प्रकाश युक्त हुआ (नः ‘माम्’) मुझे२ (देवान्-आवह) अमर३ मुक्त आत्माओं के प्रति प्राप्त करा—ले जा मोक्ष में पहुँचा॥१॥

विशेष - ऋषिः—मेधातिथिः (मेधा से परमात्मा में अतन गमन प्रवेश करने वाला उपासक)॥ देवता—इध्मः समिद्धोऽग्निर्वा (दीप्त-दीप्तिमान् या सर्वप्रकाशक अग्रणेता परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>

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