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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1463
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः
देवता - ब्रह्मणस्पतिः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
सो꣣मा꣢ना꣣ꣳ स्व꣡र꣢णं कृणु꣣हि꣡ ब्र꣢ह्मणस्पते । क꣣क्षी꣡व꣢न्तं꣣ य꣡ औ꣢शि꣣जः꣢ ॥१४६३॥
स्वर सहित पद पाठसो꣣मा꣡ना꣢म् । स्व꣡र꣢꣯णम् । कृ꣣णुहि꣢ । ब्र꣣ह्मणः । पते । कक्षी꣡व꣢न्तम् । यः । औ꣣शिजः꣢ ॥१४६३॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमानाꣳ स्वरणं कृणुहि ब्रह्मणस्पते । कक्षीवन्तं य औशिजः ॥१४६३॥
स्वर रहित पद पाठ
सोमानाम् । स्वरणम् । कृणुहि । ब्रह्मणः । पते । कक्षीवन्तम् । यः । औशिजः ॥१४६३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1463
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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टिप्पणी -
(देखो अर्थव्याख्या मन्त्र संख्या १३९)
विशेष - ऋषिः—मेधातिथिः (परमात्मा में मेधा से अतन गमन प्रवेश करने वाला उपासक)॥ देवता—ब्रह्मणस्पतिः (वेद तथा ब्रह्माण्ड का स्वामी परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>
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